Friday, 14 September 2012


गीत

एक बार आकर तो देखो मेरे गीतों के उपवन में
विश्वासों के बिखरे मोती फिर माला में जुड़ जायेंगे ।

महानगर के चकाचौंध में
बदल गया आँखों का चश्मा ,
अपने अपने हित साधन का
दि खता है हर ओर करिश्मा।
जो अंतर मन में बैठे थे
वो सब पीछे छूट गए हैं ,
तुम ही टूटे नहीं अचानक
मन के बंधन टूट गए हैं ।

एक बार जीकर देखो तो फिर से अपने भोलेपन को ,
बंजर होते संवेदन में लाखों पाटल  ख़िल जायेंगे ।

यश वैभव की भूख व्यक्ति के
आत्मतोष को तोड़ रही है ,
नए शिखर पाने की लिप्सा
समझौतों से जोड़ रही है ।
थकन भरी इस भाग दौड़ में
ठहर गयी बीतर की धारा ,
जिसे बचाने का प्रयास था ,
उष प्रवाह को खुद ही मारा ।

एक बार तो बहकर देखोभावुकता की पावन सरि में ,
मन की चादर पर कालिख के दाग स्वयं ही धुल जायेंगे ।

यह यात्रा कितने दिन की है
इसको नहीं जान पाओगे ,
मंजिल कहीं नहीं दिखती है
आखिर तुम भी थक जाओगे ।
लक्ष्यहीन इस महासफ़र में
खुद को बहुत नहीं दौडाओ
अपने उर के कल्प वृक्ष की
घनी छाँव के नीचे आओ ।

एक बार फिर गाकर देखो जीवन के मधुमय गीतों को ,
प्राणों की शाश्वत तृष्णा को, निर्मल निर्झर मिल जायेंगे ।।
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