यह कैसा लोकतंत्र जिसमे हर सच्चाई शर्मिन्दा है।
यह कैसी स्वतंत्रता जिसमे निर्भय हर एक दरिन्दा है।
यह कैसा शासन है जिसको केवल कुर्सी की चिंता है।
यह कैसी न्याय व्यवस्था है जिसकी दुनिया में निंदा है।
जनता सड़कों पर आती है कानून कड़े हो जाते हैं।
लेकिन अपराधी उससे भी दो हाथ बड़े हो जाते हैं।
पार्टियाँ देखतीं लाभ -हानि अपनी सीटों की वोटों की।
उनको कोई परवाह नहीं निर्भया तुम्हारी चोटों की।
तेरा निर्मम बलिदान हुआ धरती क्या आसमान डोला।
दुनिया का हर इंसान तुम्हारे लिए आँख भर कर बोला।
अस्मत के क्रूर लुटेरों को दुर्दान्त नीच बटमारों को।
केवल फांसी की सज़ा मिले तेरे न्रशंस हत्यारों को।
लेकिन हम सब भारत वासी दामिनी बहुत शर्मिंदा हैं।
कितने दिन बीत गए फिर भी तेरे हत्यारे जिंदा हैं।
कानून बनाने वालों पर जब कोई आफत आती है।
तब संविधान की काया क्या आत्मा बदल दी जाती है।
यह राजनीति केवल अपने हक़ में कानून बनाती है।
जनता तो जनता है इसको वादों से ही बहलाती है।
अंगारों वाली प्रतिभा को सत्ता ने सर्द बनाया है।
वोटों के लालच ने इनका चिंतन नामर्द बनाया है।
जब तक स्वदेश का सिंहासन है लाचारों के हाथों में।
तब तक खेलेगा संविधान इन हत्यारों के हाथों में।
जब तक दिल्ली को मिल जाता कोई सरदार पटेल नहीं।
तब तक इस घने अँधेरे का मिटना है कोई खेल नहीं।
बर्बरता की सीमाओ को जिस नरपिशाच ने तोड़ दिया।
यह कैसी न्याय व्यवस्था है नाबालिग कह कर छोड़ दिया।
ऐसे जगन्य अपराधी को उसका प्रसाद बाँटा जाए।
फांसी तो कोई सजा नहीं सौ टुकड़ों में काटा जाए।
है संविधान लाचार अगर यह सजा नहीं दे सकता हैं।
तो उसे बरी करके अपना ऐसा निर्णय ले सकता है।
यह जनता का अपराधी है वह जो चाहे इन्साफ करे।
चाहे फाँसी पर लटका दे या चाहे इसको माफ़ करे।
जनता केवल कुछ मिनटों में अपना फैसला सुनादेगी।
है जहाँ जगह उस पापी की उस जगह उसे पहुँचा देगी।
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