दूर कब होगा जननि घर से अभावों का अँधेरा ,
मैं तुम्हारी दया के विश्वास में बैठा हुआ हूँ |
|यह मेरा सर्वस्व यह मन प्राण हैं तेरी शरण में,
दीन दुखियों को मिला कल्याण है तेरी शरण में |
माँ हमारा संकटों से त्राण है तेरा शरण में,
मैं तुम्हारी प्रीतिके आभास में बैठा हुआ हूँ |
क्यों जननि अब तक तुम्हारी रोशनी आई नहीं ?
उलझनों से मुक्ति मैंने किसलिए पाई नहीं ?
क्यों अभी ऋण शीश पर है ,अम्ब क्यों छाई उदासी ?
मैं तुम्हारे द्वार के ही पास बैठा हुआ हूँ |
शारदे माँ अब अधिक सुत की परीक्षा लो नहीं |
इन अभावों को मिटा दो अब कोई दुःख दो नहीं
कीर्ति कविता प्यार वैभव शांति सुख तुमसे मिलेगा
शारदे मैं दैन्य के आकाश में बैठा हुआ हूँ
अब न हो सुत की उपेक्षा अब तो केवल प्यार दो माँ
मेरे सारे दोष नाशो अब सुखी संसार दो माँ
भक्ति को मेरी अभय दो इन अभावों पर विजय दो
मैं तेरी पग धूलि के मधुमास में बैठा हुआ हूँ
veri veri good poem
ReplyDeletedohe padhkar mn prsann hua dhanybad
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