जिसकी नज़रों में मान रहा बलिदानों की परिपाटी का |
जो रहा उपासक भारत का , भारत की पावन माटी का ||
जो अपने सीने पर दुश्मन के वार सैकड़ों झेल गया |
माता की लाज बचने को जो अंगारों से खेल गया ||
भारतमाता की पूजा में मजहब का कोई तर्क न था |
जिसकी नज़रों में हिंदु या मुस्लिम में कोई फर्क न था ||
जिसने शहीद के रुतबे को आगे जन्नत तक बढ़ा दिया |
मादरे वतन के क़दमों में अपने मस्तक को चढ़ा दिया ||
पंडित समझो तो पंडित हूँ मुल्ला समझो तो मुल्ला हूँ |
भारतमाता का बेटा हूँ हाँ मैं ही अशफाक उल्लाह हूँ ||
मैं देख रहा हूँ वही वतन जिसकी खातिर कुर्बान हुआ |
जिनको आज़ाद कराया था उनकी खातिर अनजान हुआ ||
हो कहाँ भगत सिंह देखो तो यह भारतवर्ष तुम्हारा है |
आज़ाद कहाँ हो बोलो तो क्या यही गुलिस्ताँ प्यारा है ||
ठाकुर रौशन सिंह तुम्ही कहो क्या इसी देश पर मरते थे |
बिस्मिल क्या अपनी गजलों में इस दिन का ही दम भरते थे ||
यश पाल तुम्हारी आँखों से क्यूँ कर बरसात हो रही है |
सूरज की खातिर जूझ मरे लगता अब रात हो रही है ||
सारे ताले ही टूट गए , क्या करे अभागी चाभी का |
इस मौसम ने मातृत्व छला बलिदानी दुर्गा भाभी का ||
थी जान लुटा दी जिसके हित वह अपनी जान नहीं लगता |
जिसमे ईमान सलामत था , वह हिंदुस्तान नहीं लगता ||
जिस मिटटी को हमने सीचा अपने लोहू के पानी से |
जिस धरती को उर्वरा किया अपनी बेलौस जवानी से ||
वह धरती आज लुटेरों के हाथों में बरबस चली गयी |
कमबख्त जवानी चली गयी अपनी कुर्बानी चली गयी ||
गाँधी नेहरु लोहिया कहो क्या यह आदर्श तुम्हारा था |
श्यामाप्रसाद बोलो सचमुच क्या यही विमर्श तुम्हारा था ||
नेता सुभाष आँखें खोलो देखो तो अपने भारत को |
दीमके खा रही निर्भय हो जिसकी आज़ाद इमारत को ||
जो भस्म हुई बलिवेदी पर आज़ादी की समिधाओं को ||
मैं अशफाक उल्लाह बुला रहा अपने उन सभी सखाओं को ||
जिसके पूजन में हवन हुए फिर से उसका पूजन कर लें |
अपने प्यारे से भारत का आकर फिर से दर्शन कर लें ||
इतना विकास हो गया यहाँ इन्सान रहा इन्सान नहीं |
इंडिया बना डाला इसको रक्खा है हिंदुस्तान नहीं ||
घोटालों पर घोटालों के नित नये एटमबम फूट रहे |
यह इसी देश के हैं शायद जो इसी देश को लूट रहे ||
ईमान हो गयी है सत्ता ,पहचान हो गयी है सत्ता |
ऐसी की तैसी भारत की भगवान् हो गयी है सत्ता ||
सत्ता का मतलब कुर्सी है सत्ता का मतलब पैसा है |
सत्ता का मतलब रूतबा है यह जैसा चाहे वैसा है ||
जनता भी तो सहभागी है इन अपराधी बटमारों की |
इसके कारण ही गद्दी है अब तक बाकी गद्दारों की ||
भारत की मिटटी को निचोड़ सोने की खेती करते हैं |
बेहिचक विदेशी बैंकों में उसकी फसलों को भरते हैं ||
वैसे है ढपली अलग अलग और अलग अलग शहनाई हैं |
लेकिन इस खाने पीने में यह सब मौसेरे भाई हैं ||
हाँ हैं थोड़े ईमानदार लेकिन वे सब आभारी हैं |
उनमें से कुछ मनमोहन हैं गिनती के अटलबिहारी हैं ||
क्या इन नेताओं की खातिर हम सबने खून बहाया है |
क्या इनकी सुविधा की खातिर अपना सर्वस्व लुटाया है ||
है भ्रस्टाचार बढ़ा इतना जनता का कोई ध्यान नहीं |
आश्चर्य घोर आश्चर्य उठा है अभी तलक तूफ़ान नहीं ||
नेता तो नेता हैं लेकिन क्या इनसे कम अधिकारी हैं |
छापे तो डालो इनके घर देखो यह कितने भारी हैं ||
यस सर यस सर करते करते इनके भी वारे न्यारे हैं |
चपरासी से सिंघासन तक रिश्वत ने पाँव पसारे हैं ||
इनसे ही रूतबा बाकी है ऐयाशी और अमीरी का |
इनसे ही बढ़ा मर्तबा है भारत में चमचागीरी का ||
हाँ कुछहै ईमान अभी अब भी सच्चाई जिंदा है |
लेकिन बहुमत के सम्मुख वह सच्चाई भी शर्मिंदा है ||
ऐसे अफसर रहते अक्सर शासन की कुटिल समीक्षा में |
या इधर-उधर फेकें जाते या है फिर बाध्य प्रतीक्षा में ||
क्या इन्हीं अमीरों की खातिर तूफानों से टकराए थे |
इनकी आज़ादी के खातिर क्या प्राण गवाए थे ||
जो हाथ बंधे थे शपथों में वे हाथ अचानक छूट गए |
इस भ्रष्ट तंत्र के हाथों से बलिदानी सपने टूट गए ||
इनको भी पीछे छोड़ दिया घर में घर वाले चोरों ने |
कर दिया खोखला पीढ़ी को बेखौफ मिलावट खोरों ने ||
यह अपराधी हैं बहुत बड़े , यह लाशों के व्यापारी हैं |
यह धन के लोलुप चौराहों पर फाँसी के अधिकारी हैं ||\
कुछ लोग यहाँ हैं भारत की रक्षा से सेंध लगाते हैं |
भारत के ख़ुफ़िया राज़ शत्रु के क़दमों तक पहुंचाते हैं ||
आतंक वादियों को घर में ये ही गद्दार बुलाते हैं |
है यही कि जो निर्दोषों की लाशों पर लाश बिछाते हैं ||
इन गद्दारों ने पैसे पर ईमान बेच डाला अपना |
धनवान बने पर कौड़ी में भगवान बेच डाला अपना ||
इनके कारण अपना भारत आतंक वाद को झेल रहा |
इनके कारण ही बचपन तक बम बन्दूकों से खेल रहा ||
क्या सोचा था अशफाक उल्लाह यह कैसा देश हो गया है |
जो चाहा था उससे बिलकुल उल्टा परिवेश हो गया है ||
जब फिर से झंझावातों का इस भारत में नर्तन होगा |
जब फिर से विप्लव दहकेगा जब फिर से नया हवन होगा ||
जब फिर से चढ़ी जवानी का गिरि सागर तक गर्जन होगा |
तब भ्रष्ट व्यवस्था टूटेगी तब कोई परिवर्तन होगा ||
जब वर्तमान की अंगड़ाई अपने अतीत में झांकेगी |
जब लुटी पिटी जनता अपने दोनों हाथों को ताकेगी ||
जब चौराहों पर अपराधी कारों से घसीटे जाएंगे |
जब भ्रष्टाचारी अपने ही कमरों में पीटे जाएंगे ||
जब गद्दारों को सरेआम फाँसी पे टांगा जाएगा |
नेताओं से सारा हिसाब सड़कों पर माँगा जाएगा ||
निर्बल जनता आक्रामक हो जब तोड़ेगी शहज़ोरों को |
जब सही सजा दी जाएगी इन क्रूर मिलावट खोरों को |\
जब दमन कारियों का जनता के द्वारा मित्र दमन होगा |
तब जाकर मेरे भारत में सचमुच का परिवर्तन होगा ||
अन्यथा हमारा हर सपना अरमान हमारा व्यर्थ गया |
मैं अशफाक उल्लाह बोल रहा बलिदान हमारा व्यर्थ गया ||
-----------------जय हिंद -----------------------
No comments:
Post a Comment