कोयल के नारे टूट गये ,सपने बेचारे टूट गये ,
जो प्रेम गगन में दमके थे वे सारे तारे टूट गये |
विश्वासों के माया मृग थे सोना मन की नादानी था |
जो तोड़ गये हो तुम रिश्ता वह पहले ही बेमानी था ||
तन का व्यापार भले हो पर मन का व्यापार नहीं होता |
स्वार्थों से प्रेरित शपथों में सच का आधार नहीं होता ||
जब तक कोई कर्तव्य नहो तब तक अधिकार नहीं होता |
अधिकार हीन संबंधों में कुछ भी हो प्यार नहीं होता ||
मन के चौबारे टूट गए भ्रम के अंधियारे टूट गए |
संयम की तरह बंधे थे जो नदिया के धरे टूट गए ||
आँखों से लेकर धरती तक केवल पानी ही पानी था |
जो तोड़ गए हो तुम रिश्ता वह पहले ही बेमानी था ||
परिवर्तन पहले भी देखा ऐसा परिवर्तन दिखा नहीं |
जिसमे आराध्य बदलते हो ऐसा आराधन दिखा नहीं ||
आत्मा तक घायल कर जाए यूँ आत्म प्रदर्शन दिखा नहीं |
वचनों में ओशो रहे मगर कर्मों में दर्शन दिखा नहीं ||
चिंतन के धरे टूट गए कुछ गीत कुंआरे टूट गए |
जो प्रणय कथाएँ लिखते थे वे साँझ संकरे टूट गए ||
खुल गई समपर्ण की परतें यह सच भी सिर्फ कहानी था |
जो तोड़ गए हो तुम रिश्ता वह पहले भी बेमानी था ||
किससे और कैसा उपालंभ जिसको खुद पर विश्वास नहीं |
किसको खोया कैसे खोया जिसको इतना आभास नहीं ||
मिल गया भले हो राजमहल लेकिन अंतर का वास नहीं |
पाया होगा आकाश बहुत लेकिन मन का मधुमास नहीं ||
संकल्प तुम्हारे टूट गए अहसास हमारे टूट गए |
मंजिल तक पहुंचे नहीं राह में घन कजरारे टूट गए ||
जो सफ़र राह में ख़त्म हुआ चिर पीड़ा के वरदानी था |
जो तोड़ गए हो तुम रिश्ता वह पहले ही बेमानी था ||
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