Sunday, 31 July 2011

गीत



कोयल के नारे टूट गये ,सपने  बेचारे टूट गये ,
जो प्रेम गगन में  दमके  थे वे सारे तारे टूट गये |
विश्वासों  के माया मृग थे सोना मन की   नादानी   था |
जो तोड़  गये  हो   तुम   रिश्ता  वह पहले ही    बेमानी  था ||     

तन का व्यापार भले  हो पर मन का व्यापार नहीं होता |
स्वार्थों से प्रेरित शपथों में  सच का आधार नहीं होता ||
जब तक कोई कर्तव्य  नहो तब तक अधिकार नहीं होता |
अधिकार हीन संबंधों  में कुछ भी हो प्यार नहीं होता ||

मन के चौबारे टूट गए भ्रम के अंधियारे टूट गए |
संयम की तरह  बंधे थे जो नदिया के धरे टूट गए ||
आँखों से लेकर धरती तक केवल पानी ही  पानी था |
जो तोड़ गए हो तुम रिश्ता वह पहले ही बेमानी था ||

परिवर्तन पहले भी देखा ऐसा परिवर्तन दिखा नहीं |
जिसमे आराध्य बदलते हो ऐसा आराधन दिखा नहीं ||
आत्मा तक घायल कर जाए यूँ आत्म प्रदर्शन  दिखा नहीं |
वचनों में ओशो रहे मगर कर्मों में दर्शन दिखा नहीं ||

चिंतन के धरे टूट गए कुछ गीत कुंआरे टूट गए |
जो प्रणय कथाएँ लिखते थे वे साँझ संकरे टूट गए ||
खुल गई समपर्ण की  परतें यह सच भी सिर्फ कहानी था |
जो तोड़ गए  हो  तुम रिश्ता वह पहले भी बेमानी था ||

किससे और कैसा उपालंभ जिसको खुद पर विश्वास  नहीं |
किसको खोया कैसे खोया जिसको इतना आभास नहीं ||
मिल गया भले हो राजमहल लेकिन अंतर का वास नहीं |
पाया होगा आकाश बहुत लेकिन मन का मधुमास नहीं ||

संकल्प तुम्हारे टूट गए अहसास हमारे टूट गए |
मंजिल तक पहुंचे नहीं राह में घन कजरारे टूट गए ||
जो सफ़र राह में ख़त्म हुआ चिर पीड़ा के वरदानी था |
जो तोड़ गए हो तुम रिश्ता वह पहले ही  बेमानी था ||
  
      

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