नहीं काटनी थी मगर काटता है
मेरा यार मेरी डगर काटता है ||
मेरा यार मेरी डगर काटता है ||
घनी बदलियाँ हैं निगाहों में फिर भी ,
शरारों में सारी उमर काटता है ||
कहाँ दुश्मनों की चली चाल कोई ,
गला तो ये लख्तेजिगर काटता है ||
नहीं पैरवी हो सकी चाहतों की ,
मुकदमा मेरा अब सफ़र काटता है ||
तेरे इस ज़ुनू से तुझे क्या मिलेगा ,
समन्दर की चढती लहर काटता है ||
येअय्यारियां किसलिए किसकी खातिर,
तू क्यों जिंदगी दर बदर काटता है ||
कहीं बंधकों की तरह रह न जाए |
खयालों को बस एक दर काटता है ||
इसे पड़ गई तेरे पिंजरे की आदत |
तू क्यों इस परिंदे के पर काटता है ||
ये खुद कर चूका है उड़ानों से तौबा |
तू क्यों इस परिंदे के पर काटता है ||
निभाया है किरदार का सिद का जिसने |
तू क्यों उस परिंदे के पर काटता है ||
मैं इस जिंदगी को करूँ क्या की जिसको |
तेरे चाहतों का ज़हर काटता है ||
घनी छांव से ही अदावत है उसको |
वो दुष्यंत का गुल मोहर काटता है ||
मेरी छट पटाहट पे मुस्कान उसकी |
सितमगर ज़हर से ज़हर काटता है ||
बहुत तेज़ है धार तर्कों में उसके |
वफाओं का मेरी असर काटता है ||
नहीं उसकी खुशबू रही मेरे घर में |
ये बेजान सा मुझको घर काटता है ||
मेरे दर्द को मेरी बेचैनियों को |
मेरी शायरी का हुनर काटता है ||
बड़ी धार है उसकी कातिल नज़र में |
ज़माने की हर बद्नज़र काटता है ||
नरेश तेरी परवाह उसको नहीं है |
तू यादों में जिसकी उमर काटता है ||
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