Monday, 1 August 2011

गजल

मेरे घर उनकी आमद है |
आज कहीं भी जाना रद है ||
चंद  लफ्ज़ मीठे भी बोलो |
आखिर किस मदिरा का मद है ||
सबके अपने राग अलग हैं |
मेरा घर है या संसद है ||
मज़हब तूने फर्क बताए |
यह मोहन है यह अहमद है ||
वक़्त नाप देता है सबको |
किस काया का कितना कद है ||
तू बिछुडेगा  यही  सोचकर   ,
तुझसे मिलना भी त्रासद है ||
यहाँ कोई उपदेश न देना ,
यह दिलवालों की परिषद है ||
यह मेरा दिल मेरा है पर |
यही आपका घर शायद है ||
मैं नरेश तेरा यात्री हूँ |
तू मंजिल है, तू सरहद है  ||

  

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