सूने सूने सम्बन्ध हुए |
घायल करुणा के छंद हुए ||संस्कृति का विकल पलायन है|
हर ओर स्वार्थ का वंदन है ||कोई न मानता है मानवता के मत को |
फिर एक विवेकानंद चाहिए भारत को ||
परमार्थ स्वयं असहाय हुआ |
अध्यात्म शुद्ध व्यवसाय हुआ ||
चिंतन में कहीं न देश यहाँ |
सुविधाओं के संदेश यहाँ |\
दर्शन तो मात्र प्रदर्शन है |
बस सत्ता का आकर्षण है ||\
सच का अस्तित्व उदास हुआ |
आलोक तिमिर का दास हुआ ||
कोई न देखता है पीढ़ी के आगत को |
फिर एक विवेकानंद चाहिए भारत को ||
उपचार सभी उपयुक्त करे |
मानव को भय से मुक्त करे ||
आतंकों का परिहार करे |
अन्यायों का प्रतिकार करे ||
पौरुष को सच से जोड़ सके |
लिप्सा के बंधन तोड़ सके |\
हर ले संस्कृति के शोक सभी |
उन्मुक्त करे आलोक सभी ||
पाले जो अपराजेय ज्ञान वाले व्रत को |
फिर एक विवेकानंद चाहिए भारत को ||
बदले वैश्विक परिवेश सभी |
सीमाओं में हो देश सभी ||
शोषित की आत्मा जगा सके |
शोषण में पावक लगा सके ||
जो मनुज धर्म का वरण करे |
जन गण मन में संचरण करे ||
संहार करे हर संशय का |
जो हो प्रतीक सुर्योदय का||
अभिव्यक्त कर सके जो भारत के अभिमत को |
फिर एक विवेकानंद चाहिए भारत को ||
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