सचाई का तमाचा झूट का मन तोड़ देता है |
वो चेहरा देखता है और दर्पण तोड़ देता है ||
लहू के गर्म रिश्तों में बगावत यूँ नहीं होती |
कोई बाहर का माहिल घर का आँगन तोड़ देता है ||
परों को खीच लेती है खुले अम्बर की आज़ादी |
परिंदा यूँ नहीं पिंज़रे का बंधन तोड़ देता है ||
कोई दूरी बनाता है तो मन को चोट लगती है |
कोई रहता है दिल में और जीवन तोड़ देता है ||
तड़प पूछो नहीं उनकी जिन्हें डसती है तन्हाई |
फुहारों में भिगो कर और सावन तोड़ देता है ||
मुफलिसी तोड़ देती है जवानी के हंसी सपने |
शराबी बाप खुद बचों का बचपन तोड़ देता है ||
जहां पर टूट जाती हैं ज़माने भर की शमशीरें |
उन्हीं पत्थर दिलों को एक कंगन तोड़ देता है ||
नरेश देखि चमक तो कह दिया सोना तुम्हे मैंने |
कहीं सोना कसौटी पर खरा पण छोड़ देता है ||
No comments:
Post a Comment