मेरी कविता निखार दे माता ,
मेरे शब्दों को सार दे माता |
मेरे मानस के रिक्त आसन पर ,
अपना आसन उतार दे माता |
भावना को श्रंगार दे माता,
कल्पना को विचार दे माता |
मेरी धुंधला रही सी स्मृति में ,
हंस अपना उतार दे माता ||
भक्ति देती है ज्ञान देती है ,
कल्पना को उड़ान देती है |
मेरी माता सरस्वती जग क़ो,
गुनगुनाता विहान देती है ||
सारा मौसम उदास लगता है ,
वक्त खाली गिलास लगता है |
बिन तुम्हारे मेरा वजूद सुनो,
गंध के बिन पलास लगता है ||
दर्प का आसमान टूटेगा ,
दूरियों का मचान टूटेगा |
जिसके कारण अलग हुए हम तुम ,
जाने कब वो गुमान टूटेगा ||
गीत अधरों पे तो जगे पहले ,
राग में बांसुरी पगे पहले |
रंग तो हैं हजार दुनियां में ,
जिंदगी प्यार में रंगे पहले ||
aapki lagan aur pryas ko salaam
ReplyDeletewah wah......kya kahne!!!!
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