Saturday, 30 July 2011

मुक्तक

मेरी कविता निखार  दे माता ,
मेरे शब्दों  को सार  दे माता |
मेरे मानस के  रिक्त आसन पर ,
अपना  आसन उतार दे माता |
 
भावना  को श्रंगार  दे माता,
कल्पना को  विचार  दे माता |
मेरी धुंधला  रही  सी  स्मृति  में , 
हंस  अपना  उतार दे  माता ||
 भक्ति  देती है ज्ञान  देती  है ,
कल्पना को  उड़ान देती है |
मेरी  माता सरस्वती  जग क़ो,
गुनगुनाता  विहान देती है ||

 सारा  मौसम  उदास लगता है ,
वक्त  खाली गिलास   लगता है |
बिन  तुम्हारे मेरा   वजूद सुनो,
  गंध  के बिन पलास  लगता है ||

 दर्प  का  आसमान टूटेगा ,
दूरियों  का मचान  टूटेगा |
जिसके कारण अलग  हुए हम तुम ,
जाने  कब वो गुमान टूटेगा ||

गीत  अधरों पे तो  जगे पहले ,
राग में बांसुरी  पगे पहले |
रंग तो हैं  हजार दुनियां में ,
जिंदगी  प्यार में रंगे पहले ||


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