Saturday, 30 July 2011

दोहे

मन मीरा सा बावरा , तन कबीर सा मस्त ,
दृष्टि हो गयी सूर सी , कान्हा की  अभ्यस्त |
      
कोयल बोले बाग़ में, अभ्यंतर में मौन ,
सांस सांस में रात दिन , बोल रहा है कौन |

सुधियों में  पाटल  खिले, वन में खिले पलाश ,
तुम आये तो हो गया , यह जीवन मधुमास ||

दरस परस को हो गए , जाने कितने साल ,
तकिये के नीचे  रखा ,यादों का रुमाल ||
  
दावानल वन में लगा , हृदय विरह की आग ,
सांस सांस को डस गया , मधुरित वाला नाग ||

सुबह सुबह ही आज फिर  गया अचानक जाग , 
दोनों बोले साथ ही मोबाइल और काग ||

तुम   टोना करके गए, मन हो गया अधीर ,
भाग भाग कर जा रहा, पागल सागर तीर ||

विविध रंग के पुष्पशर लेकर चढ़ा अनंग ,
पहले  से आहत पड़ा ,विरही हृदय कुरंग  ||

पिचकारी में प्यार का पावन अमृत घोल ,
रंग  दे  तन मन जगत का , जय फागुन  की बोल||

जाने तुमको क्या हुआ , भूल गए हर बात ,
बातों बातों में कटी , सारी सारी रात ||     

इंतेज़ार किसका रहा , किसकी रही तलाश ,
तुमने देखा ही नहीं मैं  भी तो था पास ||                                                        


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