मन मीरा सा बावरा , तन कबीर सा मस्त ,
दृष्टि हो गयी सूर सी , कान्हा की अभ्यस्त |
कोयल बोले बाग़ में, अभ्यंतर में मौन ,
सांस सांस में रात दिन , बोल रहा है कौन |
सुधियों में पाटल खिले, वन में खिले पलाश ,
तुम आये तो हो गया , यह जीवन मधुमास ||
दरस परस को हो गए , जाने कितने साल ,
तकिये के नीचे रखा ,यादों का रुमाल ||
दावानल वन में लगा , हृदय विरह की आग ,
सांस सांस को डस गया , मधुरित वाला नाग ||
सांस सांस को डस गया , मधुरित वाला नाग ||
सुबह सुबह ही आज फिर गया अचानक जाग ,
दोनों बोले साथ ही मोबाइल और काग ||
तुम टोना करके गए, मन हो गया अधीर ,
भाग भाग कर जा रहा, पागल सागर तीर ||
विविध रंग के पुष्पशर लेकर चढ़ा अनंग ,
पहले से आहत पड़ा ,विरही हृदय कुरंग ||
पिचकारी में प्यार का पावन अमृत घोल ,
रंग दे तन मन जगत का , जय फागुन की बोल||
जाने तुमको क्या हुआ , भूल गए हर बात ,
बातों बातों में कटी , सारी सारी रात ||
इंतेज़ार किसका रहा , किसकी रही तलाश ,
तुमने देखा ही नहीं मैं भी तो था पास ||
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