नमस्ते ! हाल क्या है आपका , परिवार कैसा है |
इन दिनों दोस्ती का यह नया इज़हार कैसा है ||
बस इतना पूछ कर ही फ़र्ज़ पूरा हो गया उनका |
फ़क़त इंसानियत का क़र्ज़ पूरा हो गया उनका ||
वो देखो जा रहे हैं दौड़कर पीछे से जाओगे |
उन्हें फुर्सत नहीं है तुम व्यथा कैसे सुनाओगे ||
कहीं वह दर्द सुन भी लें तो ऐसा मुंह बनायेंगे |
कि जैसे बाप की अर्थी उठाने ये ही आयेंगे ||
ये हैं हमदर्दियों के घर ,इन्हें कुछ गम नहीं होता |
मगर चेहरे पे इनके भाव दुःख का कम नहीं होता ||
इन्हें अपना समझ कर यदि ख़ुशी अपनी बताते हो |
तरक्की की कथा अपनी,अगर इनको सुनाते हो ||
तो अपने दिल का दरवाजा ख़ुशी से खोल देंगे ये |
तो दावत हो गयी पक्की हमारी ,बोल देंगे ये ||
तुम्हारे गम या खुशियों की ,कहानी से नहीं मतलब |
तुम्हारे सत्य से या लंतरानी से नहीं मतलब ||
ये परिचित लोग हैं ,परिचय से आगे बढ नहीं सकते |
तुम्हारी क्या किसी की भावना को पढ़ नहीं सकते ||
अगर इनको कहीं से लाभ कुछ होता दिखाई दे |
कोई वह काम जो इनको ,कोई लम्बी कमाई दे ||
तो रूककर आपसे रिश्ता गज़ब का जोड़ लेते हैं |
ज़रूरी काम भी ऐसे समय पर छोड़ देते हैं ||
मोहब्बत के भवन के द्वार सारे खोल देते हैं |
सलाहें जिंदगी की फिर तुम्हें अनमोल देते हैं ||
तुम्हारे साथ तो पिछले जनम से ही लगे हैं ये |
अगर हित सिद्ध होता है तो फिर सबसे सगे हैं ये ||
कभी भी दर्द अपना इनके आगे गुनगुनाना मत |
कभी भी आंसुओं का एक भी दीपक दिखाना मत ||
ज़रूरी हो बहुत किस्सा मगर इनको सुनाना मत |
लबों पर आ भी जाए बात कोई पर बताना मत ||
ये जो रिश्ता निभाते हैं ,उसे तुम भी निभा देना |
ये मिलकर मुस्कुराते हैं तो तुम भी मुस्कुरा देना ||
ये धारा बह रही जैसी उसे वैसी ही बहने दो |
ये परिचित लोग हैं प्यारे इन्हें परिचित ही रहने दो ||
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