ह्रदय का सागर बहुत कांपा
और नैंनों तक सुनामी आ गई ||
स्वप्नके पंछी कहाँ जाएँ ,घोंसले तक आ गया पानी |
पेड़ की औकात ही क्या है ,पर्वतों को खा गया पानी ||
अब न जाने राम क्या होगा ,
प्रलय की बदली गगन में छा गई ||
मैं तुम्हारे झूठ को जीकर ,खुश बहुत था क्या किया तुमने |
आज दशकों बाद जाने क्यों ,एक सच बतला दिया तुमने ||
मैं तुम्हारा सिर्फ ग्राहक था ,
आपकी कातिल नज़र समझा गई ||
क्या बिगड़ जाता तुम्हारा ,जिन्दगी के चार दिन थे |
क्या न तुमसे कट रहे थे ,शेष पल इतने कठिन थे ||
मैं तुम्हारा एक मुहरा था ,
प्यार की गीतांजली पथरा गई ||
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