Friday 4 November 2011

कोई ऐसा बाज़ार नहीं

सब मांग रहे अपने अपने अहसानों का बदला मुझसे ,
मेरी कृतज्ञता का भी पारावार नहीं |
मैं कैसे चुकता करूँ भरूँ यह ऋण कैसे ,
अपनी साँसों पर भी मेरा अधिकार नहीं ||

माता ने जनम दिया और प्यार दुलार दिया,
अपनी ममता से करुना का संसार दिया |
पालन कर्ता का चढ़ा पित्र ऋण बाकी है ,
गुरुओं ने विद्या दी जीवन का सार दिया ||
मैं लाख जतन करके भी दे न सका खुशियाँ ,
मेरी श्रृद्धा के लिए कोई तैयार नहीं |\

भाई बहनों का ऋण भी नहीं किसी से कम ,
सम्बन्ध रुधिर के यह उनके ही कारण हैं |
मेरे अब तक के सारे किये गए उपक्रम ,
बेमतलब हैं नाकाफी हैं साधारण हैं ||
उनको लगता है उन्हें छोड़कर दुनिया में ,
मेरा कोई भी है अपना संसार नहीं ||

जो भी समाज में मान प्रतिष्ठा मिली मुझे ,
या किसी रूप में जो भी मुझ पर दौलत है |
पत्नी कहती है ,तेरी कुछ औकात नहीं ,
तेरा क्या है वह सब तो मेरी बदौलत है ||
सब कुछ उसका है तो फिर कर्ज चुकाने को ,
मैं कहाँ बिकूं  ऐसा कोई बाज़ार नहीं ||

बेटा  बेटी जिनके कारण मैं बाप बना,
उनके अहसानों का कुछ बदला दिया नहीं |
मैं जो करता हूँ वह तो है दायित्व मेरा ,
उनका कहना है मैंने कुछ भी किया नहीं ||
लगता है अगले कई जनम लग जायेंगे  ,
पर हो पाऊँगा मैं इनसे उद्धार नहीं ||

है इस समाज का भी हर पग पर क़र्ज़ चढ़ा ,
मित्रों का , दुनिया के सब रिश्तेदारों का |
टुकड़े टुकड़े बट गया मेरा सारा वजूद
आत्मा पर भी है बोझ बहुत उपकारों का||
मैं द्वार द्वार का देनदार हूँ दुनिया में ,
मेरा अपना कोई कोई स्वतंत्र किरदार नहीं ||

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