Thursday, 18 August 2011

मुक्तक

हरहराती नदी की तरह तुम मिले |
एक पल में सदी की तरह तुम मिले ||
चार छन का मिलन उम्र भर की व्यथा,
इस तरह त्रासदी की तरह तुम मिले ||


अंततः हट गया आवरण आपका ,
प्रीति का छल भरा व्याकरण आपका|
दो पटरियों सरीखा रहा सर्वदा ,
लसफा आपका आचरण आपका ||


प्रेम का सत्य थे पर वृथा हो गये |
जिंदगी के हवन की पृथा हो गये |
अब सुनाएँ किसे जो लिखी आपने ,
हम अंधेरों की आदिम कथा हो गये ||


बद्लिओं सी मिली प्यास देकर गयी |
चाहतों सी मिली त्रास देकर गयी |
एक सीता जनकपुर गयी लौटकर ,
राम को फिर से वनवास देकर गयी ||

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