Friday 8 March 2013

मुक्तक

स्वप्न आँखों में पाल कर रखना ,
नेह सांसों में ढालकर  रखना ।
सोच में आधुनिक भले रहना ,
सर पे पल्लू संभाल कर रखना ॥

जिंदगी को सदा सरल रखना ।
अपनी करुणा सदा तरल रखना ।
प्यार रखना ह्रदय में कुछ ऐसे ,
जैसे कलसे  में गंगा जल रखना ॥

आगे बढ़ना बहुत ज़रूरी है ,
स्वप्न गढ़ना बहुत ज़रूरी है ।
प्यार जिससे करो उसे पहले ,
खूब पढ़ना बहुत ज़रूरी है ॥

दिल को घायल बना के रख देगा ,
मन को विह्वल बना के रख देगा ।
इसको आसान मत समझना तुम ,
प्यार पागल बना के रख देगा ॥

मेघ सावन नहीं समझ पाए ।
प्यार का धन समझ नहीं पाए ।
सिर्फ खुद को ही रहे समझाते,
 तुम मेरा मन समझ नहीं पाए ॥

गम की बाँहों में जल रहा हूँ मैं ,
मन की चाहों में जल रहा हूँ मैं ।
जो किये ही नहीं कभी मैंने ,
उन गुनाहों में जल रहा हूँ मैं ॥

लोग कहते हैं बढ़ रहा हूँ मैं ,
नए आयाम चढ़ रहा हूँ मैं ।
किसको बतलाऊँ  अपनी मज़बूरी,
अपने ख्वाबों से लड़ रहा हूँ मैं ॥

मेरे दिल का सलाम मत लेना ।
मेरी चाहत का जाम   मत लेना ।
लोग पूछेंगे उदासी का सबब ,
तुम कभी मेरा नाम मत लेना ॥

तेरी सुधियों की भीड़ लगती है ।
कोई राधा किसन को रंगती है।
फूल को चूमती है जब तितली ,
मेरे होठों पे प्यास जगती है ॥

एक युग में किसी सदी की तरह ।
 पार्थ  के दिल में द्रोपदी की तरह ।
सिन्धु सी हैं मेरी खुली बाहें ,
तुम समां जाओ इक नदी की तरह ॥

पाटलों से उठे महक जैसे ।
बिजलियों से उठे चमक  जैसे।
मेरी सांसों में गूंजती हो तुम ,
पायलों से उठे खनक जैसे ॥

प्यार को शिद्दतों में ले कोई ।
नीर में बर्फ सा घुले कोई ।
पहले बाँहों में सिमट जाये और ,
पर्त दर पर्त फिर खुले कोई ॥

इस सफ़र में विराम मत लेना ।
मेरा उत्साह थाम मत लेना ।
आगये हो जो जिंदगी की तरह ,
दूर जाने का नाम मत लेना ॥

गिंदगी है तो वफ़ा है दिल है ।
है नदी तो भंवर है साहिल है ।
साथ तुम हो तो ये ज़माना है ,
चाहतें हैं सफ़र है मंजिल है ॥

दर्द जब बेपनाह  होता है।
आंसुओं का प्रवाह होता है ।
जेब खली हुई तो ये समझा ,
प्यार करना गुनाह होता है ॥

तेरी कमियों का हार जोड़ेंगे ।
तुझको मझधार में ही छोड़ेंगे ।
तू जिन्हें टूट करके चाहेगा ,
वोतुझे इंच इंच तोड़ेंगे ॥

किसकी खातिर कलम ये घिसते हैं ।
किसलिए आठोंयाम  पिसते हैं ।
कौन बेटा है कौन बेटी  है ,
सब के सब स्वार्थों के रिश्ते हैं ॥

चूनर धानी धानी रच ।
अगारों पर पानी रच ।
जर्जर होते रिश्तों पर ,
कोई नयी कहानी रच ॥

वज्म को छोड़ने से क्या होगा ।
दंभ को जोड़ने से क्या होगा ।
अपने चेहरे  से पोंछ लो कालिख ,
आइना तोड़ने से क्या होगा  ।।

भार किसके लिए यहाँ ढ़ोता ।
चैन क्यों रत दिन यहाँ खोता ।
बाद मुद्दत के ये समझ आया,
कोई अपना नहीं यहाँ होता ॥
 










































































 प्यार का धन समझ नहीं पाए ।