Tuesday, 31 December 2013



गये साल की पाती नये साल के नाम

भीगी आँखें रुंध गया गला ।  लो मैं सिंहासन छोड़ चला ॥
है घडी विदाई कि मेरी  । चहुँदिशि  अगवानी है तेरी  ॥
अब तक  सिंहासन  था मेरा । अब राजतिलक होगा तेरा ॥
मेरे दिन पूरे हुए यार । मैं काल चक्र  से गया हार  ॥\
तेरी जय हो तू जीत गया । मेरा क्या  मैं तो बीत गया ॥

यह दुनिया आनी जानी है । सुन मेरी अजब कहानी है ॥
तू नया निराला दीख सखे । कुछ सीख सके तो सीख  सखे ॥
मैं भी इक दिन अभ्यागत  था ।\मेरा भी ऐसा स्वागत था ॥
उस स्वागत से मैं फूल गया । अपने दिन गिनना भूल गया ॥
मैं मन से बड़ा सिकंदर था । सच ये था एक  कलेंडर  था ॥
बारह महिनों का जीवन था । सीमित घड़ियों का सावन था ॥
लेकिन मन में उत्साह लिए । कुछ नया करूँ यह चाह लिये ॥
मैं घिरा रहा सम्मानों में ।  अभिभूत  रहा वरदानों में ।।
मैं सोच रहा था सृष्टा हूँ । फिर ज्ञात हुआ मैं दृष्टा हूँ ॥
मैं हर पल को  लेखता रहा । हर इक घटना देखता रहा ॥

कितने तूफान गए आये । कितने ही उपवन मुरझाये ॥
कितने दुखियों पर गाज गिरी । कितने कंठों पर तेग फिरी ॥
मानवता को रोते  देखा । सब अनचाहा  होते  देखा ॥
देखा मानव को पशु होते । अबलाओं को इज्ज़त खोते ॥
वासना हुई  निर्भय  देखी । अत्याचारों की जय देखी ॥
मूल्यों का महाक्षरण देखा । दुष्टों का अलंकरण देखा ॥
स्वार्थों का दावानल देखा  । अमृत की  जगह गरल, देखा ॥
पापों की महाप्रगति देखी । भ्रष्टाचारों की अति  देखी ॥
फिर गयी सभी की मति देखी । विश्वासों की दुर्गति देखी ॥
केवल पैसे का खेल दिखा । बस बेमेलों का मेल दिखा ॥

पर्वत को गलते देखा है । श्रृद्धा को छलते  देखा है ॥
बिखरे - बिखरे बंधन देखे । किरचों -किरचों दरपन देखे ॥
आतंकवाद की लय देखी । सागर से उठी प्रलय देखी ॥
पत्थर  जल में घुलते देखा । शिव का त्रिनेत्र खुलते देखा ॥
आँगन -आँगन मातम देखा । कुटियों में पसरा तम देखा ॥
सूनी आँखों में गम देखा । टूटता हुआ सरगम देखा ॥
मेधा की आँखें नम देखीं । खुशियां देखीं पर कम देखीं ॥
सच का आलय कंगाल दिखा । झूठों का बड़ा कमाल दिखा ॥
कोई -कोई खुशहाल दिखा । अक्सर भीगा रुमाल दिखा ॥
तम हुआ कहीं कमज़ोर दिखा । इस बार न्याय का ज़ोर दिखा ॥
परिवर्तन के भी पंख दिखे । गूंजते क्रान्ति के शंख दिखे ॥

कुर्सी वाले बेहाल दिखे । संकल्प केजरीवाल दिखे ॥
बदले गति के आचरण दिखे । मंगल तक जाते चरण दिखे ॥
पाया कम ज्यादा खोया हूँ । मैं नहीं आजतक  सोया हूँ ।\
प्यारे तेरी  अगवानी है । आँखों में खारा पानी है  ॥
तेरी आँखों को ख़ुशी मिले । हर इक चेहरे को हंसी मिले ॥
तुझको हर दिन त्यौहार मिले । हँसता गाता संसार मिले ॥
दुनिया से गायब शोक मिले । हर आँगन में आलोक मिले ॥
परिवर्तन भरा विहान मिले । मानवता की मुस्कान मिले ।\
सद्भाव मिले ,अनुराग मिले । संस्कृति का सुखद प्रयाग मिले ॥
तेरा सहचर भगवान् रहे । हाँ एक बात का ध्यान रहे ।\
नव रंगों में रंगना होगा । तुझको अनुक्षण  जागना होगा ॥

जय का कर तेरे शीश धरुं । तेरे मस्तक का तिलक करूँ ॥
स्वर गूंज रहा शहनाई का । है मेरा समय बिदाई का ।\
अब तक हर घर मेरा घर था । पर मैं तो एक कलेंडर था ॥
अंतिम तिथि आई गुज़र गया । लो मैं खूंटी से उतर गया ॥
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Friday, 18 October 2013

ग़ज़ल

रात  दिन  उसके  दर  पे  आने  जाने  से  मिलेगा  क्या ।
नहीं  मालूम  उसके  आस्ताने  से  मिलेगा  क्या ॥

ख़ुशी  की  चंद  घड़ियाँ  आंसुओं  से  धो  रहा  है  तू ,
तुझे  ज़ख्मों  भरे  गुज़रे ज़माने  से  मिलेगा  क्या ॥

कहा  पोते  ने  दादी  से  कभी  बाज़ार भी  जाओ।
मुझे जो दे रही हो  चार आने से मिलेगा क्या ॥

वो जो दिखता था खिड़की  पर  सगाई हो गई उसकी,
नहाकर छत पे अब गेसू सुखाने से मिलेगा क्या ॥

दिया मौक़ा तुम्हें जब भी बहुत धोखे मिले मुझको ,
तुम्हीं बोलो तुम्हें फिर आज़माने से मिलेगा क्या ॥

उन्हें खोजो जिन्हें इस मुल्क की परवाह हो साथी।
गरीबों को भला ऊँचे घराने से मिलेगा क्या ॥

तनिक सी चोट लगने पर तुम्हें जो छलछला आयीं।
उन आँखों को बुढ़ापे में रुलाने से मिलेगा क्या ॥

यहाँ बेचारगी है ,दर्द है ,आहें हैं ,आंसू हैं ,
तुम्हें इक वोट से ज्य़ादा खज़ाने से मिलेगा क्या ॥

ये ऐसे पेड़ जो परछाइयों को छीन लेते हैं '.
इन्हें अपने लिए छाता बनाने से मिलेगा क्या ॥

Thursday, 5 September 2013

जनता फैसला सुनाएगी।

 यह कैसा लोकतंत्र जिसमे हर सच्चाई शर्मिन्दा है। 
यह कैसी स्वतंत्रता जिसमे निर्भय हर एक दरिन्दा है।

यह कैसा शासन है जिसको केवल कुर्सी की चिंता है। 
यह कैसी न्याय व्यवस्था है जिसकी दुनिया में निंदा है। 

जनता सड़कों पर आती है कानून कड़े हो जाते हैं। 
लेकिन अपराधी उससे भी दो हाथ बड़े हो जाते हैं। 

पार्टियाँ देखतीं लाभ -हानि अपनी सीटों की वोटों की। 
उनको कोई परवाह नहीं निर्भया तुम्हारी चोटों की। 

तेरा निर्मम बलिदान हुआ धरती क्या आसमान डोला। 
दुनिया का हर इंसान तुम्हारे लिए आँख भर कर बोला। 

अस्मत के क्रूर लुटेरों को दुर्दान्त नीच बटमारों को। 
केवल फांसी की सज़ा मिले तेरे न्रशंस हत्यारों को। 

लेकिन हम सब भारत वासी दामिनी बहुत शर्मिंदा हैं।  
कितने दिन बीत गए फिर भी तेरे हत्यारे जिंदा हैं। 

कानून बनाने वालों पर जब कोई आफत आती है। 
तब संविधान की काया क्या आत्मा बदल दी जाती है। 

यह राजनीति केवल अपने हक़ में कानून बनाती है। 
जनता तो जनता है इसको वादों से ही बहलाती है। 

अंगारों वाली प्रतिभा को सत्ता ने सर्द बनाया है।  
वोटों के लालच ने इनका चिंतन नामर्द बनाया है। 

जब तक स्वदेश का सिंहासन है लाचारों के हाथों में। 
तब तक खेलेगा संविधान इन हत्यारों के हाथों में। 

जब तक दिल्ली को मिल जाता कोई सरदार पटेल नहीं। 
तब तक इस घने अँधेरे का मिटना है कोई खेल नहीं। 

बर्बरता की सीमाओ को जिस नरपिशाच ने तोड़ दिया।  
यह कैसी न्याय व्यवस्था है नाबालिग कह कर छोड़ दिया। 

ऐसे जगन्य अपराधी को उसका प्रसाद बाँटा जाए। 
फांसी तो कोई सजा नहीं सौ टुकड़ों में काटा जाए। 

है संविधान लाचार अगर यह सजा नहीं दे सकता हैं। 
तो उसे बरी करके अपना ऐसा निर्णय ले सकता है। 

यह जनता का अपराधी है वह जो चाहे इन्साफ करे। 
चाहे फाँसी पर लटका दे या चाहे इसको माफ़ करे। 

जनता केवल कुछ मिनटों में अपना फैसला सुनादेगी। 
है जहाँ जगह उस पापी की उस जगह उसे पहुँचा देगी।

Sunday, 14 April 2013

रावण का आक्रोश  
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इस बार राम ने जैसे ही दशकंधर को ललकारा है ।
तरकश  से तीखे तीर लिए काँधे से धनुष उतारा है ॥
वैसे ही छुब्ध दशानन का आकुल विद्रोही मन डोला ।\
 वाणी में विस्फोटक भरके वह राघव से ऐसे बोला ।
रावण पर बाण चलाने का हे राम उपाय नहीं करना ।
हे दशरथ नंदन सावधान ऐसा अन्याय नहीं करना ॥
तुम मर्यादापुरुषोत्तम हो करुनानिधान कहलाते हो ।
दुष्टों का करते हो विनाश धरती से पाप  मिटाते हो ॥
दुनिया का सारा पाप ताप क्या मुझ में ही दिखलाया है ।
केवल मुझ पर ही बार बार तुमने धनु बाण उठाया है ॥
पहले सागर उस पार मिली अब सागर के इस पार मिली ।
अपराध किया था एक बार पर सज़ा हज़ारों बार मिली ॥
मैं  रक्ष संस्कृति का स्वामी मैंने तो अपना काम किया ।
हे आर्य पुत्र नाहक मुझको इस दुनिया ने बदनाम किया ॥
तुम नायक हो मैं खलनायक बेशक मुझ पर तुम वार करो ।
भारत के क्रूर दरिंदों का लेकिन पहले संहार  करो ॥


माना मैंने धर साधु वेष  वैदेही का अपहरण  किया ।
लेकिन मर्यादा के विरुद्ध मैंने न कभी आचरण किया ॥
सीता अशोक वाटिका रही मेरा इतना ही नाता था ।
मेरी पटरानी बन जाओ इतना कह कर समझाता था ॥
मैं  राक्षस हूँ मेरा स्वभाव वैदेही को धमकाता था ।
 पर जब जाता था पास कभी पत्नी को लेकर जाता था ॥
जिसको अपराध कहोगे तुम ऐसा तो कुछ भी हुआ नहीं ।
लंका में मैंने सीता को इक उंगली से भी छुआ नहीं ॥
लेकिन जिस भारत को अपनी तुम मातृभूमि   बतलाते हो ।
जिसके आगे तुम सोने की मेरी लंका ठुकराते हो ॥
उस भारत में हे राघवेन्द्र पापों की नदी बह रही है ।
जिसको तुम माता कहते हो वह कितने दुःख सह रही है  ॥
हैं नहीं सुरक्षित अबलायें हे राम तुम्हारे भारत में ।
नित लूटी  जातीं बालाएं हे राम तुम्हारे भारत में ॥
कर दिया कलंकित साधु  वेष भारत के नमक हरामों ने ,
अपराधी क्रूर कामियों ने गुरमीतों  आशारामों ने।
नगरों से लेकर गावों तक बेख़ौफ़ भेड़िये घूम रहे ।
साम्राज्य वासना का फैला दुर्दांत नशे में झूम रहे ॥
मर्यादा की सब सीमाएं हे राघव टूटी जाती हैं ।
कितनी दामिनियाँ निर्भय हो सड़कों पर लूटी जाती हैं ॥
हे राघवेन्द्र इन दुष्टों पर क्यों धनु टंकार नहीं करते ।
इन पापी अधम पिशाचों पर क्यों बाण प्रहार नहीं करते ॥
अस्मत के क्रूर लुटेरों के सीने  पर  प्रथम प्रहार करो ।
मैं वक्ष खोल कर खडा हुआ राघव तब मुझ पर वार करो ॥


है याद तुम्हे जब लक्ष्मण के सीने में शक्ति समाई थी ।
मेरे  सुषेण ने ही  जाकर तब उनकी जान बचाई थी ॥
क्या राज वैद्य ने दुश्मन को उपचार उचित था दिया नहीं ।
यह लंका की मर्यादा थी बदले में कुछ भी लिया नहीं ॥
भारत के कितने महावैद्य जो विशेषज्ञ कहलाते हैं ।
हे राम जानते हो कैसे वह सेवा धर्म  निभाते हैं ।।
भूखे नंगे बीमारों से पहले धन जमा कराते हैं ।
तब जाकर यह सेवाधर्मी रोगी को हाथ लगाते हैं ॥
जो इन अपराधी वैद्यों की कुल फीस नहीं भर पाते हैं ।
कितने ही शल्य चिकित्सा की मेजों पर ही मर जाते हैं ॥
यह नहीं चिकित्सक हैं राघव यह सारे क्रूर लुटेरे हैं ।
हे दशरथनंदन यह पापी सारे भारत को घेरे हैं।
पहले इन राजरोगियों की बीमारी का  उपचार करो ।
मैं वक्ष खोल कर खड़ा हुआ राघव तब मुझ पर वार करो ॥


मैं भी लंका का राजा था दुनिया का वैभव ले आया ।
अपनी लंका को सोने से मैंने दुनिया में चमकाया ॥
लंका का कोई व्यक्ति कभी हे राम भूख से मरा नहीं ।
मैंने लंका का धन लेकर दूसरे देश में भरा नहीं ॥
भारत के धन कुबेर पैसा भारत में पचा नहीं पाए ।
तुम तो भारत के रक्षक थे अपना धन बचा नहीं पाए ॥
चोरी से और दलाली से जनता का शोषण करते हैं ।
यह नए लुटेरे भारत का पैसा विदेश में भरते हैं ॥
यह उजले उजले अपराधी ईमान धरम सब भूल गए ।
इनके कारण कितने किसान बेबस  फांसी पर झूल गए ॥
सत्ता इनके कब्ज़े में है इस लिए शान से ऐंठे हैं ।
नीचे से लेकर ऊपर तक यह भ्रष्टाचारी  बैठे हैं ॥
पहले इन भ्रष्ट पापियों का हे राघवेन्द्र संहार करो ।
मैं वक्ष खोल कर खडा राम तब मेरे ऊपर वार करो ॥


मेरी लंका के वाशिंदे लंका पर मर मिट जाते थे ।
लेकिन दुश्मन तक कभी नहीं घर की ख़बरें पहुचाते थे।।
 लंका के लाखों वीरों ने रण में खुद को बलिदान किया।
मै अच्छा था या बुरा किन्तु,मेरी जिद का सम्मान किया।।
हाँ एक विभीषण था जिसने दुश्मन को गले लगाया था।
मैंने उस लंका द्रोही को लंका से दूर भगाया था।।
भारत के वीर सिपाही जो सीमा पर हैं तैनात खड़े।
हिम से,वर्षा से,गर्मी से, दुश्मन से हो बेख़ौफ़ लड़े।।
उन बांके वीर सैनिको ने,तन-मन-धन सब कुर्बान किया।
भारत माता की रक्षा में प्राणों का भी बलिदान किया।।
लेकिन कुछ देशद्रोहियों ने दुश्मन से हाथ मिलाया है।
आतंकवादियों को घर में इन नीचो ने ठहराया है।।
हे राघवेन्द्र हत्यारों ने ऐसा षड़यंत्र रचाया है।
घर-घर विस्फोट बमों के हैं,आतंकवाद का साया है।।
इनके कारन निर्दोषों का सड़कों पर लहू बह रहा है।
वह चीख-चीख कर कौशलेश,तुमसे बस यही कह रहा है।।
यह लाशों के हैं व्यापारी हैं,पहले इनका संहार करो।
मै वक्ष खोल कर खड़ा राम,तब बेशक मुझ पर वार करो।।

रावण से भी सौगुना बड़े,यह पापी,अत्याचारी हैं।
लज्जा के धन के अपहर्ता,अपराधी,भ्रष्टाचारी हैं।।
फिर से मेरा वध  करने का संकल्प ह्रदय में पाल लिया।
तुमने बस रावण को देखा,अपना धनुबाण संभाल लिया।।
आखिर कब तक बस मेरा ही,राघव संहार करोगे तुम।
कर चुके मेरा वध एक बार,और कितनी बार करोगे तुम।।
तुम मर्यादा के पालक हो,कैसे मर्यादा तोड़ोगे।
एक ही पाप की सज़ा मुझे,सौ  बार भला कैसे दोगे।।
यदि कुछ कर सकते हो राघव,तो बाण शरासन पर धारो।
भारत के क्रूर दरिंदो को गिन-गिन करके पहले मारो।।
हे कमलनयन हो सावधान,अवसर है नयन भिगोने का।
कुछ लोगो को विश्वास नहीं,हे राम तुम्हारे होने का।।
अपने भारत को एकबार कुछ ऐसा कर दिखलाओ तुम।
अपने धनु की टंकारो से,अपनी पहचान कराओ तुम।।
भारत माता की पीड़ा का उपचार नहीं होने वाला।
मेरा वध करके,भारत का उद्धार नहीं होने वाला।।
पहले नीचों से भारत की धरती का हल्का भार करो।
मै वक्ष खोल कर खड़ा हुआ राघव तब मुझ  पर वार करो।।

मुक्तक


पढ़ाई हो रही नहीं आभास होता है ।
फूल सी लाडली पर बाप को विश्वास होता है
किताबें लेके सज धज कर निकल जाती सुबह घर से
शाम तक पार्क में बेटी का एक्स्ट्रा क्लास होता है


खुशामद से या धमकी से वो घर को साध लेती हैं
झूठ अपराध होता है तो कर अपराध लेती हैं
कमर में हाथ डाले दोस्त के बाइक पे  निकलीं तो
वो अक्सर  अपने चेहरे पर दुपट्टा बाँध लेतीं हैं

 नहीं कॉलेज वो पिक्चर हाल को आबाद करती हैं
बहुत अंकुश है घर का खुद को यूँ आज़ाद करती हैं
जवानी में कहाँ इस बात का एहसास होता है
वो अपना करियर  ,धन बाप का बर्बाद करती हैं


मिला माइक तो बेसुर ही सही पर गाने लगते हैं
ये अपने त्याग को गाथाओं को  दोहराने लगते  हैं
जो काले धन या भ्रष्टाचार के कुछ प्रश्न पूछो तो
ये ज़िम्मेदार नेता खोपड़ी खुजलाने लगते हैं


जो अच्छा हो रहा है कुछ  वो  इनका यक्ष करता है
कभी छुप छुप के करता है कभी प्रत्यक्ष करता है
ये दंगे ,रेप , हत्याएं,डकैती  ,चोरियां सारी
है  इनका एक ही उत्तर कि ये प्रतिपक्ष  करता है

ये हैं सरकार  बैठे हैं बदल कर खोल कुर्सी में  ।
कभी इसको कभी उसको रहे हैं तोल कुर्सी में ।
शहर जलता है तो जल जाय ये हट ही नहीं सकते "
लगा है इस तरह का कोई फेविकोल कुर्सी में ॥

ये दिल वाले सियासतदान  ले इमदाद  बैठे हैं ।
कहीं मजनूं कहीं रांझा कहीं फरहाद बैठे हैं ।
नहीं लुटने  से पहले लड़कियों को होश आता है ,
कि  ये आशिक नहीं हैं हुश्न के जल्लाद  बैठे हैं ॥

तुझे इतना उठाएंगे जहां से दूर कर देंगे ।
ये नेता स्वप्न से आँखें तेरी भरपूर कर देंगे ।
जो मन भर जाएगा तो अपने रस्ते से हटा देंगे ,
नहीं तो आत्महत्या के लिए मजबूर कर देंगे ॥

ये पुल सड़कें चबायेंगे इन्हें कुछ भी नहीं होगा ।
ये दारु में नहायेंगे इन्हें कुछ भी  नहीं होगा ।
समोसे खा गए हो तुम तुम्हारा पेट फूलेगा ,
ये पूरा देश खायेंगे इन्हें कुछ भी नहीं होगा ॥
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Friday, 8 March 2013

मुक्तक

स्वप्न आँखों में पाल कर रखना ,
नेह सांसों में ढालकर  रखना ।
सोच में आधुनिक भले रहना ,
सर पे पल्लू संभाल कर रखना ॥

जिंदगी को सदा सरल रखना ।
अपनी करुणा सदा तरल रखना ।
प्यार रखना ह्रदय में कुछ ऐसे ,
जैसे कलसे  में गंगा जल रखना ॥

आगे बढ़ना बहुत ज़रूरी है ,
स्वप्न गढ़ना बहुत ज़रूरी है ।
प्यार जिससे करो उसे पहले ,
खूब पढ़ना बहुत ज़रूरी है ॥

दिल को घायल बना के रख देगा ,
मन को विह्वल बना के रख देगा ।
इसको आसान मत समझना तुम ,
प्यार पागल बना के रख देगा ॥

मेघ सावन नहीं समझ पाए ।
प्यार का धन समझ नहीं पाए ।
सिर्फ खुद को ही रहे समझाते,
 तुम मेरा मन समझ नहीं पाए ॥

गम की बाँहों में जल रहा हूँ मैं ,
मन की चाहों में जल रहा हूँ मैं ।
जो किये ही नहीं कभी मैंने ,
उन गुनाहों में जल रहा हूँ मैं ॥

लोग कहते हैं बढ़ रहा हूँ मैं ,
नए आयाम चढ़ रहा हूँ मैं ।
किसको बतलाऊँ  अपनी मज़बूरी,
अपने ख्वाबों से लड़ रहा हूँ मैं ॥

मेरे दिल का सलाम मत लेना ।
मेरी चाहत का जाम   मत लेना ।
लोग पूछेंगे उदासी का सबब ,
तुम कभी मेरा नाम मत लेना ॥

तेरी सुधियों की भीड़ लगती है ।
कोई राधा किसन को रंगती है।
फूल को चूमती है जब तितली ,
मेरे होठों पे प्यास जगती है ॥

एक युग में किसी सदी की तरह ।
 पार्थ  के दिल में द्रोपदी की तरह ।
सिन्धु सी हैं मेरी खुली बाहें ,
तुम समां जाओ इक नदी की तरह ॥

पाटलों से उठे महक जैसे ।
बिजलियों से उठे चमक  जैसे।
मेरी सांसों में गूंजती हो तुम ,
पायलों से उठे खनक जैसे ॥

प्यार को शिद्दतों में ले कोई ।
नीर में बर्फ सा घुले कोई ।
पहले बाँहों में सिमट जाये और ,
पर्त दर पर्त फिर खुले कोई ॥

इस सफ़र में विराम मत लेना ।
मेरा उत्साह थाम मत लेना ।
आगये हो जो जिंदगी की तरह ,
दूर जाने का नाम मत लेना ॥

गिंदगी है तो वफ़ा है दिल है ।
है नदी तो भंवर है साहिल है ।
साथ तुम हो तो ये ज़माना है ,
चाहतें हैं सफ़र है मंजिल है ॥

दर्द जब बेपनाह  होता है।
आंसुओं का प्रवाह होता है ।
जेब खली हुई तो ये समझा ,
प्यार करना गुनाह होता है ॥

तेरी कमियों का हार जोड़ेंगे ।
तुझको मझधार में ही छोड़ेंगे ।
तू जिन्हें टूट करके चाहेगा ,
वोतुझे इंच इंच तोड़ेंगे ॥

किसकी खातिर कलम ये घिसते हैं ।
किसलिए आठोंयाम  पिसते हैं ।
कौन बेटा है कौन बेटी  है ,
सब के सब स्वार्थों के रिश्ते हैं ॥

चूनर धानी धानी रच ।
अगारों पर पानी रच ।
जर्जर होते रिश्तों पर ,
कोई नयी कहानी रच ॥

वज्म को छोड़ने से क्या होगा ।
दंभ को जोड़ने से क्या होगा ।
अपने चेहरे  से पोंछ लो कालिख ,
आइना तोड़ने से क्या होगा  ।।

भार किसके लिए यहाँ ढ़ोता ।
चैन क्यों रत दिन यहाँ खोता ।
बाद मुद्दत के ये समझ आया,
कोई अपना नहीं यहाँ होता ॥
 










































































 प्यार का धन समझ नहीं पाए ।