Tuesday, 31 December 2013



गये साल की पाती नये साल के नाम

भीगी आँखें रुंध गया गला ।  लो मैं सिंहासन छोड़ चला ॥
है घडी विदाई कि मेरी  । चहुँदिशि  अगवानी है तेरी  ॥
अब तक  सिंहासन  था मेरा । अब राजतिलक होगा तेरा ॥
मेरे दिन पूरे हुए यार । मैं काल चक्र  से गया हार  ॥\
तेरी जय हो तू जीत गया । मेरा क्या  मैं तो बीत गया ॥

यह दुनिया आनी जानी है । सुन मेरी अजब कहानी है ॥
तू नया निराला दीख सखे । कुछ सीख सके तो सीख  सखे ॥
मैं भी इक दिन अभ्यागत  था ।\मेरा भी ऐसा स्वागत था ॥
उस स्वागत से मैं फूल गया । अपने दिन गिनना भूल गया ॥
मैं मन से बड़ा सिकंदर था । सच ये था एक  कलेंडर  था ॥
बारह महिनों का जीवन था । सीमित घड़ियों का सावन था ॥
लेकिन मन में उत्साह लिए । कुछ नया करूँ यह चाह लिये ॥
मैं घिरा रहा सम्मानों में ।  अभिभूत  रहा वरदानों में ।।
मैं सोच रहा था सृष्टा हूँ । फिर ज्ञात हुआ मैं दृष्टा हूँ ॥
मैं हर पल को  लेखता रहा । हर इक घटना देखता रहा ॥

कितने तूफान गए आये । कितने ही उपवन मुरझाये ॥
कितने दुखियों पर गाज गिरी । कितने कंठों पर तेग फिरी ॥
मानवता को रोते  देखा । सब अनचाहा  होते  देखा ॥
देखा मानव को पशु होते । अबलाओं को इज्ज़त खोते ॥
वासना हुई  निर्भय  देखी । अत्याचारों की जय देखी ॥
मूल्यों का महाक्षरण देखा । दुष्टों का अलंकरण देखा ॥
स्वार्थों का दावानल देखा  । अमृत की  जगह गरल, देखा ॥
पापों की महाप्रगति देखी । भ्रष्टाचारों की अति  देखी ॥
फिर गयी सभी की मति देखी । विश्वासों की दुर्गति देखी ॥
केवल पैसे का खेल दिखा । बस बेमेलों का मेल दिखा ॥

पर्वत को गलते देखा है । श्रृद्धा को छलते  देखा है ॥
बिखरे - बिखरे बंधन देखे । किरचों -किरचों दरपन देखे ॥
आतंकवाद की लय देखी । सागर से उठी प्रलय देखी ॥
पत्थर  जल में घुलते देखा । शिव का त्रिनेत्र खुलते देखा ॥
आँगन -आँगन मातम देखा । कुटियों में पसरा तम देखा ॥
सूनी आँखों में गम देखा । टूटता हुआ सरगम देखा ॥
मेधा की आँखें नम देखीं । खुशियां देखीं पर कम देखीं ॥
सच का आलय कंगाल दिखा । झूठों का बड़ा कमाल दिखा ॥
कोई -कोई खुशहाल दिखा । अक्सर भीगा रुमाल दिखा ॥
तम हुआ कहीं कमज़ोर दिखा । इस बार न्याय का ज़ोर दिखा ॥
परिवर्तन के भी पंख दिखे । गूंजते क्रान्ति के शंख दिखे ॥

कुर्सी वाले बेहाल दिखे । संकल्प केजरीवाल दिखे ॥
बदले गति के आचरण दिखे । मंगल तक जाते चरण दिखे ॥
पाया कम ज्यादा खोया हूँ । मैं नहीं आजतक  सोया हूँ ।\
प्यारे तेरी  अगवानी है । आँखों में खारा पानी है  ॥
तेरी आँखों को ख़ुशी मिले । हर इक चेहरे को हंसी मिले ॥
तुझको हर दिन त्यौहार मिले । हँसता गाता संसार मिले ॥
दुनिया से गायब शोक मिले । हर आँगन में आलोक मिले ॥
परिवर्तन भरा विहान मिले । मानवता की मुस्कान मिले ।\
सद्भाव मिले ,अनुराग मिले । संस्कृति का सुखद प्रयाग मिले ॥
तेरा सहचर भगवान् रहे । हाँ एक बात का ध्यान रहे ।\
नव रंगों में रंगना होगा । तुझको अनुक्षण  जागना होगा ॥

जय का कर तेरे शीश धरुं । तेरे मस्तक का तिलक करूँ ॥
स्वर गूंज रहा शहनाई का । है मेरा समय बिदाई का ।\
अब तक हर घर मेरा घर था । पर मैं तो एक कलेंडर था ॥
अंतिम तिथि आई गुज़र गया । लो मैं खूंटी से उतर गया ॥
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