ग़ज़ल
रात दिन उसके दर पे आने जाने से मिलेगा क्या ।
नहीं मालूम उसके आस्ताने से मिलेगा क्या ॥
ख़ुशी की चंद घड़ियाँ आंसुओं से धो रहा है तू ,
तुझे ज़ख्मों भरे गुज़रे ज़माने से मिलेगा क्या ॥
कहा पोते ने दादी से कभी बाज़ार भी जाओ।
मुझे जो दे रही हो चार आने से मिलेगा क्या ॥
वो जो दिखता था खिड़की पर सगाई हो गई उसकी,
नहाकर छत पे अब गेसू सुखाने से मिलेगा क्या ॥
दिया मौक़ा तुम्हें जब भी बहुत धोखे मिले मुझको ,
तुम्हीं बोलो तुम्हें फिर आज़माने से मिलेगा क्या ॥
उन्हें खोजो जिन्हें इस मुल्क की परवाह हो साथी।
गरीबों को भला ऊँचे घराने से मिलेगा क्या ॥
तनिक सी चोट लगने पर तुम्हें जो छलछला आयीं।
उन आँखों को बुढ़ापे में रुलाने से मिलेगा क्या ॥
यहाँ बेचारगी है ,दर्द है ,आहें हैं ,आंसू हैं ,
तुम्हें इक वोट से ज्य़ादा खज़ाने से मिलेगा क्या ॥
ये ऐसे पेड़ जो परछाइयों को छीन लेते हैं '.
इन्हें अपने लिए छाता बनाने से मिलेगा क्या ॥
रात दिन उसके दर पे आने जाने से मिलेगा क्या ।
नहीं मालूम उसके आस्ताने से मिलेगा क्या ॥
ख़ुशी की चंद घड़ियाँ आंसुओं से धो रहा है तू ,
तुझे ज़ख्मों भरे गुज़रे ज़माने से मिलेगा क्या ॥
कहा पोते ने दादी से कभी बाज़ार भी जाओ।
मुझे जो दे रही हो चार आने से मिलेगा क्या ॥
वो जो दिखता था खिड़की पर सगाई हो गई उसकी,
नहाकर छत पे अब गेसू सुखाने से मिलेगा क्या ॥
दिया मौक़ा तुम्हें जब भी बहुत धोखे मिले मुझको ,
तुम्हीं बोलो तुम्हें फिर आज़माने से मिलेगा क्या ॥
उन्हें खोजो जिन्हें इस मुल्क की परवाह हो साथी।
गरीबों को भला ऊँचे घराने से मिलेगा क्या ॥
तनिक सी चोट लगने पर तुम्हें जो छलछला आयीं।
उन आँखों को बुढ़ापे में रुलाने से मिलेगा क्या ॥
यहाँ बेचारगी है ,दर्द है ,आहें हैं ,आंसू हैं ,
तुम्हें इक वोट से ज्य़ादा खज़ाने से मिलेगा क्या ॥
ये ऐसे पेड़ जो परछाइयों को छीन लेते हैं '.
इन्हें अपने लिए छाता बनाने से मिलेगा क्या ॥
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