आखिर कितना रोता वह्
कबूतर
तिनके - तिनके से
बनाया घोंसला दानों के
साथ -साथ चोंच से प्यार उड़ेल कर पाले बच्चे बाज ने
कर लिए उदरस्थ गिरा दिया घोंसला टूट -
टूट कर रोया कबूतर |
बहुत शांत है अब वह
गलती थी तो उसी की नहीं
बनाना था उसे पेड़ पर घोंसला पुरानी हवेली / मंदिर के खंडहर में/ किसी अधपेटे
कुंएं की खोहों में कहीं भी बना लेता अपना घर उसके वंश की नियमावली
में वर्जित था खुली हवा
में घोंसला बनाना रूढ़ियों
-परम्पराओं से बगावत कर आम की
बौराई डाल के पत्तों के बीच रच लिया अपना
आशियाना कतई
नहीं सोचा उसने उस वक़त
कि यह हवा आम की बौराई डाल
/हरे -हरे पत्ते
आने वाली
विपदा से नहीं बचा पाएंगे
रह
जायेंगे केवल साक्षी बनकर
कबूतर को
यह अफ़सोस नहीं है ,
अपने
आश्रयदाता के तटस्थ रहने का /घोंसला बनाने का
एक ही
गलती की उसने
खुली हवा
की चाहत में इतना पागल नहीं होना था उसे
कि वह
ऐसे घोसले में
नयी पीढ़ी
का सपना भी देख डाले
शारीरिक
और मानसिक स्वंत्रता
स्वयं
उसी के लिए थी उपयुक्त
उन
बच्चों के लिए बिलकुल नहीं
जो उसके
सपनों की तरह थे सुकुमार
जिन्हे
परम्परागत शत्रुता निभाते रूढ़ियों के बाज़ में
असमय ही
अपना भोजन बना लिया
अपनी उस
गलती के लिए सोचता है कबूतर
आज़ादी का
जूनून /उल्टीधार में तैरने का संकल्प
लेता ही
है कुछ बलिदान
अब नहीं
रोता कबूतर।
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