Sunday, 30 March 2014

ययाति का गुनाह
एक थी शर्मिष्ठा
रूप गर्विता , सम्मोहन सिद्धा
निकलकर पुराणों के पन्नों से
तोड़कर शब्दों का रेशमी जाल
ययाति की चिर तृषा पर टूटकर बरस गयी
एक बदली की  तरह
टूट गया देवयानी का दंभ
समर्पण और प्रेम की  सुकुमार साधना के सुकोमल आघात से
पागल हो गया ययाति
तन से लेकर मन तक
कौन जानता था  पुराणजीवी शर्मिष्ठा
इतिहास में चित्रलेखा के किरदार में है
चरित्र के भीतर चिंतन का विस्फोट
प्रीतिकाम्या की वह यात्रा
बदल गयी अमृता के रूप में
अपने साहिर के जज़बातों की हथेली पर
अंगूठे का निशान लगाती
रसीदी टिकट पर इमरोज़ का चित्र उकेरती
स्त्री का सत्य ,प्रेम का सत्य
स्वाधीनता का सत्य
सीमाओं का सत्य
शब्द-शब्द  टांकती रही 
बाहर था सभी कुछ ठीक- ठाक
कोयल को कटाई अंदेशा नहीं था
मौसम अपने तेवर बदलेगा
हवाएं बबंडर बन जाएंगी
आत्म प्रक्षालन का दुश्चक्र
समझौते की परिणिति में
गड्ड-मड्ड  हो जायेंगे इतने चरित्र
स्वार्थ और सुविधा की  दहलीज़ पर
उभरेगा नया  बिम्ब
अभिनय / अभिव्यक्ति के विविध रंगों से
एक अन्य पात्रा 'जूली'  का
नाम लेते ही  आधुनिकता पसार दे पाँव
चरित्र का अर्थ
ऐन -केन प्रकारेण स्वार्थ - सिद्धि
तन , मन तो दूर आत्मा तक का ज़िक्र नहीं
बाज़ार में बाज़ार का होना पड़ता है।
जहां हर मोहक छवि
कभी शर्मिष्ठा , कभी चित्रलेखा
कभी अमृता और अंततः जूली दीख पड़ती है
कंगाल हो गया ययाति
वह चाहे तो खरीद सकता है
अपनी फटी हुई जेब के बराबर कोई किरदार
किन्तु उसका कोई खरीदार नहीं
अभी भी हर पात्र की  व्याख्या
हर चरित्र की पैरवी
समय  ने दोषी ठहरा दिया ययाति को
कटघरे में खड़ा ययाति
अदालत की दीवारें  नाच रहीं हैं
पता नहीं शर्मिष्ठा और जूली के बीच
और कितने पात्र सर उठा दें
योर ऑनर ! दोषी है ययाति
प्रेम, विश्वास और समर्पण का
इसे दे दीजिए सज़ा
अंतिम सांस तक तड़पने और छटपटाने की।



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