आँखों में लज्जा नहीं ,बलिदानों पर क्लेश |
ऐसे लोगों को रहा झेल हमारा देश ||
बलिदानों की तेरहवीं ,लगा रहे हैं भोग |
महापात्र इस में ,राजनीति के लोग ||
धमकी पर धमकी चढ़ी ,वादों पर प्रतिवाद |
मर्द मौन हो सुन रहे ,हिजड़ो का संवाद ||
घर छूटा कुर्सी गयी ,चढ़ा प्यार का भूत|
चाँद मोहम्मद बन गये ,भजनलाल के पूत||
यह तो दिल का रोग है ,ले लेता है प्राण |
क्या कुर्सी क्या संपदा ,कहें संत कल्याण ||
विश्वासों के घाव पर लगा नहीं अवलेह |
जितनी ज्यादा प्रीति है ,उतना ही संदेह ||
मन के पंछी ने दिए ,अपने पंख पसार|
नीले नभ तक हो गया ,सपनों का विस्तार ||
सागर नदिया के लिए ,क्यों हो रहा अधीर |
नदिया में जब बह रहा ,सागर का ही नीर ||
लोहे को सोना किया ,पारस हुआ अनाम |
सोना लेकर फिर रहा ,स्वर्णकार का नाम ||
शर्मिष्ठा के रूप से फिर छल गया ययाति |
रही देवयानी खड़ी,चकित सदा की भांति ||
जितना ही मन को दिया ,इस दुनिया ने दाह|
उतना ही बढ़ता गया ,प्राणों का उत्साह ||
थोड़ी सी बरसात में ,छोड़ गयी उद्यान |
मरुथल में किस भांति हो ,कोयल की पहचान ||
सुविधा के साम्राज्य में ,ऐसी कर की मार|
बंद हो गया आज कल ,मन वाला व्यापार||
तेरा हर व्यवहार है ,वचनों के प्रतिकूल |
कांटे दामन में भरे ,दिखलाए थे फूल||
पावक कैसे हो सके ,दीपशिखा के साथ |
सीली-सीली तीलियाँ ,गीले-गीले हाथ ||
बंद हो गये शांति के सारे पावन स्रोत |
रक्त सने कर से उड़े ,लहूलुहान कपोत ||
मर्यादाओं को मिली ,पुरखों वाली देह|
नई रौशनी पा गयी ,युग का नूतन गेह||
दागहीन चादर लिए ,प्यासा खड़ा कबीर |
किसको अवसर है ,यहाँ दे करुना का नीर ||
वे बादल दल में बटे ,जो लाये थे नीर |
खेतों के खाते लिखी ,सूखे की जागीर ||
राजा के दरबार में मिला सभी को न्याय |
तोते को पिंजरा मिला ,मिली शेर को गाय||
बेटा लोहू से करे ,मुखिया का अभिषेक |
इतना कर्जा दे गये , बाप अंगूठा टेक ||
कैसे आंचल में भरे ,साहब का आशीष |
तन का कुरता ले चुकी ,बाबू की बख्शीश ||
मानसरोवर में लगी अब हंसों पर रोक|
बगुलों ने दावा दिया न्यायालय में ठोंक ||
सुविधा भोगी हो गये ,सारे पीर फकीर |
वायुयान में बांचते ,राजा की तक़दीर ||
शैतानों की भीड़ में ,खोये हैं इन्सान |
किसको अवसर है यहाँ ,कौन करे पहचान ||
भीषण गर्मी में दिखे पावस ऋतु के चित्र |
बादल मल कर चल दिए ,पुरवाई के इत्र ||
तपते -तपते गाल पर ,शीतल जल की बूंद |
आनंदित होती रही ,पुरवा आंखे मूंद ||
मौसम का रुख देखकर ,सारा उपवन मौन |
चुप्पी क्या रंग लायगी, इसको जाने कौन ||
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