Wednesday, 28 September 2011

गीतिका

नहीं काटनी थी मगर काटताहै |
मेरा प्यार मेरी डगर काटता है ||
घनी बदलियाँ हैं निगाहों में फिर भी ,
शरारों पे साड़ी उमर काटता है ||
कहाँ दुश्मनों की चली सचल कोई ,
गला अपना लख्तेजिगर काटता है ||
नहीं पैरवी हो सकी चाहतों की ,
मुकदमा मेरा अब सफ़र काटता है ||
तेरे इस जुनूं से तुझे क्या मिलेगा ,
समंदर की चढ़ती लहर काटता है ||
ये  ऐय्यारियां किसलिए किसकी खातिर ,
तू क्यों जिंदगी दर -ब-दर काटता है ||
कहीं बंधकों की तरह रह न जाए ,
खयालों  को बस एक डर काटता है ||
इसे पड़ गयी तेरे पिंजरे की आदत ,
तू क्यों इस परिंदे के पर काटता है ||
ये खुद कर चुका है उड़ानों से तौबा,
तू क्यों इस परिंदे के पर काटता है ||
निभाया है किरदार कासिद का जिसने ,
तू क्यों उस परिंदे के पर काटता है||
मैं इस जिंदगी का करूँ क्या कि जिसको ,
तेरी चाहतों का ज़हर काटता है ||
घनी छाँव से ही अदावत है उसको ,
वो दुष्यंत का गुलमोहर काटता है,
 मेरी  छटपटाहट पे मुस्कान उसकी ,
सितमगर ज़हर से ज़हर काटता है ||
बहुत तेज़ है धार तर्कों में उसके ,
वफाओं का मेरी असर काटता है ||
मेरे घर में अब उसकी खुश्बू न आह्ट,
ये बेजान सा मुझको घर काटता है ||
मेरे दर्द को मेरी बेचैनियों को ,
मेरी शायरी का हुनर काटता है ||
नरेश तेरी परवाह उसको नहीं है ,
तू यादों में जिसकी उमर काटता है ||
         oooooooooo

ग़ज़ल

टुकड़ा- टुकड़ा जीने की लाचारी होता है |
अगर यही है प्यार  तोह ये बिमारी होता है ||
आँखों का सूनापन ,या खालीपन सीने का ,
जाने किसके स्वागत की तैयारी होता है ||
शायद उस रुसवाई   के पीछे भी उल्फत हो ,
एक नशा है जो यकीं पर तारी होता है ||
इतने गम इतनी बेचैनी औ इतने आँसू,
लम्हा लम्हा अब उसका आभारी होता है ||
उसको पता नहीं है , उसके इंतज़ार वाला ,
एक एक पल दिल पर कितना भारी होता है ||
वैसे तो मेरी आँखों के आँसू पी जाता ,
चख कर बोला यह पानी तो खारी  होता है ||
नहीं स्वांति -जल ,ते प्यासे मरने की मजबूरी ,
यह ज़ज्बा ही चाहत की खुद्दारी होता है ||
कत्लगाह तक तो 'नरेश ' को उसने पहुँचाया
क़त्ल का फतवा और किसी से जारी होता है ||
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Tuesday, 27 September 2011

आह्लाद जिया

जीने को यूँ भी जी लेता , लेकिन मैंने अपवाद जिया |
दो चषक प्रीतिके जीने थे , सौ -सौ  कलशे  अवसाद जिया ||
प्राणों की विकल  पिपासा ने ,
शीतल सरिता का जल पाया |
लेकिन उस जल की चाहत ने ,
मोहक शब्दों का छल पाया ||
शहदीली अभिलाषाओं ने अनपेक्षित सा आस्वाद जिया |
दो चषक प्रीति के जीने थे सौ -सौ कलशे अवसाद जिया ||
घटनाये रहीं चीखती पर ,
विश्वासों का श्रृंगार किया |
पागल विवेक के तकों को ,
अंतस ने अस्वीकार किया ||
वादों , वचनों की बेला में , मनुहारों ने प्रतिवाद जिया |
दो चषक प्रीति के जीने थे , सौ-सौ कलशे अवसाद जिया |\
अच्छा था पूर्ण समर्पण से,
पहले अहसास बिखर जाता |
हर सपना सूनी आँखों में ,
आने से पहले मर जाता ||
सुख की बाहें सुस्म्रतियाँ हैं , पीड़ाओं का अनुवाद जिया| 
दो चषक प्रीति के जीने थे सौ-सौ कलशे अवसाद जिया ||
मुझको छूना , मुझमें घुलना .
मेरी सांसों में खो जाना |
हर आकुलता का मर जाना ,
संवेदन पत्थर हो जाना |\
संबंधों की अकुलाहट ने अंतर्वेधी सम्वाद जिया |
दो चषक प्रीति के जीने थे , सौ-सौ कलशे अवसाद  जिया ||
अब तुझसे क्या शिकवा करना ,
मुझको मुझसे हरने वाले |
मेरी खातिर जीने वाले ,
मेरी खातिर मरने वाले ||
मैंने तो हर पल जीवन में आँसू -आँसू आह्लाद जिया |
दो चषक प्रीति के जीने थे ,सौ- सौ कलशे अवसाद जिया| 
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Monday, 26 September 2011

गीत


यहाँ सब स्वप्न सी सच्चाईयाँ हैं , तुम नहीं हो |
समय की टूटती अंगडाइयां  हैं , तुम नहीं हो ||
हमारे गाँव में वर्षा वधू की पालकी उतरी ,
गगन में मेघ देखो आके घहराने लगे हैं |
घुंघुरुओं की तरह से छनकती हैं भूमि पर बूंदें ,
सरोवर मौन थे वह भैरवी गाने लगे हैं ||
ये बंदनवार सी अमराइयाँ हैं तुम नहीं हो |
यहाँ सब स्वप्न सी सच्चाइयाँ हैं तुम नहीं हो ||

घनी बसवारियों के बांस परिणय खंभ जैसे |
तुम्हारी भांवरों की चिर प्रतीक्षा में खड़े हैं ||
निशा की श्याम आँचल में दमकते हीरकों से |
अनगिनत जुगनुओं के रत्न मनमोहक जड़े हैं ||
पिकी की बज रही शहनाइयाँ हैं तुम नहीं हो |
यहाँ सब स्वप्न सी सच्चाइयाँ हैं तुम नहीं हो ||

यह हरियाली लिए है रंग आँचल का तुम्हारे |
दिशाओं में तुम्हारी खुशबुएँ फैली हुई है ||
हमारी यह सघन अनुभूतियाँ जो जागती हैं |
तुम्हारी चेतना की उँगलियों से अन छुई हैं ||
बहुत मादक हुई पुरवाइयां  हैं तुम नहीं हो| 
यहाँ सब स्वप्न सी सच्चाइयाँ  हैं तुम नहीं हो ||  

उपस्थिति है तुम्हारी पर हमारी कल्पना में |
तुम्हे यह घर ,यह देहरी , द्वार छूकर देखना चाहें ||
हमारी गाँव की गलियाँ , बगीचे , खेत, चौबारे ,
तुम्हारे गात को साभार छूकर देखना चाहें ||
ये स्वागत में सजल अंगनाइयां हैं तुम नहीं हो |
समय की टूटती अंगनाइयां हैं तुम नहीं हो ||
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Tuesday, 20 September 2011

हमारी  रक्त रंजित ईद होली कौन करता है ?

बनाई स्रष्टि ईश्वर ने तो कितना ध्यान रक्खा था |
कि हर सै में कोई सपना कोई अरमान रक्खा था ||
मुहब्बत नाम से चेहरा कोई वो दे नहीं पाया ,
तो उसने प्यार का उन्वान ही इन्सान रक्खा था ||

धरा पर उस बड़े फनकार कि कारीगरी हम हैं |
ये दुनिया है विधाता कि तो इसकी जिंदगी हम हैं||
दिया उसने जो हमको और किसके पास है बोलो ,
कि उस शायर की सबसे खुबसूरत शायरी हम हैं ||

हमारी जिंदगी को उसने सुबहोशाम सौंपे हैं |
हमारी जिंदगी को प्यार के पैगाम सौंपे हैं ||
दया,करुना, मुहब्बत ,एक दूजे के लिए मिटना,
हमारी धडकनों को उसने कितने काम सौंपे हैं ||

यहाँ मरती रहीं किलकारियां हर ओर हम भी थे |
यहाँ जलतीं रहीं फुलवारियां हर ओर हम भी थे ||
हमारे सामने मिटती रहीं कृतियाँ विधाता की ,
यहाँ बढ़तीं  रहीं बीमारियाँ हर ओर हम भी थे ||

यहाँ पर ,क्या यहाँ पर ,राम या रहमान रहते हैं ?
इसी धरती पे क्या मालिक तेरे अरमान रहते हैं ?
यहाँ पर हर तरफ शैतान का साम्राज्य फैला है ,
यहाँ क्या वाकई में रव तेरे इन्सान रहते हैं ?

यहाँ नफरत की डायन गा रही थी और हम भी थे |
नदी उन्माद की लहरा रही थी और हम भी थे |
लुटीं कोखें मिटीं मांगें ,अनाथालय बनी बस्ती ,
सियासत मौत सी मंडरा रही थी और हम भी थे ||

हमारे प्यार का बंधन जला हम कुछ नहीं बोले |
हमारी सभ्यता का धन जला हम कुछ नहीं बोले |
मुहब्बत का दिया ही जल न पाया दोस्तों हमसे ,
यहाँ चारों तरफ जीवन जला हम कुछ नहीं बोले ||

हमारा तन व मन गिरवी रखा था इसलिए चुप थे |
हमारा अपनापन गिरवी रखा था इसलिए चुप थे |
ज़बानों पर हमारी क्यों थे ताले लोग पूंछेंगे ,
हमारा ज़ेहन भी गिरवी रखा था इसलिए चुप थे ||

कहाँ पर सर झुकायेंगे ,कहाँ पर मुंह छुपायेंगे |
हमारी पीढियां पूछेंगी उनसे क्या बताएँगे ||

लड़ाता कौन है हमको यहाँ हर बार ये सोचो |
बनाता  कौन है हमको यहाँ  लाचार   ये सोचो ||
सियासत चाहती है और हम आपस में लड़ते हैं |
हमारी जिंदगी का कौन है मुख़्तार ये सोचो ||

हमारे घर में भी मरियम सी माँ है सोचना होगा |
हमारे घर में भी बिटिया जवां है सोचना होगा ||
हमारे फूल से बच्चे हमारी राह तकते हैं |
हमारे सामने भी आइना है सोचना होगा ||

हमारी रक्त रंजित ईद होली कौन करता है |
हमारी दर्द से लबरेज़ झोली कौन करता है |
हमारी जिंदगी को दो निवाले दे नहीं सकता ,
हमारी भूख से आकर ठिठोली कौन करता है ||

हमें हिन्दू या मुस्लिम कौन करता  है यहाँ बोलो |
कौन उन्माद की बारूद भरता है यहाँ बोलो ||
हमें हर  हाल में ही तोड़ने का यत्न करता है ,
हमारी एकता से कुन डरता है यहाँ बोलो ||

उसे देखो जिसे किलकारियां अच्छी नहीं लगतीं |
हमारे देश की फुलवारियाँ अच्छी नहीं लगतीं ||
जिसे सम्मान भारत वर्ष का अच्छा नहीं लगता ,
जिसे इस मुल्क की खुद्दारियां अच्छी नहीं लगतीं ||

हमारे रास्ते को दिन ब दिन दुश्वार करता है |
हमारे देश के सद् भाव को बीमार केरता है ||
जो डॉलर ,पौंड या दीनार के हाथों बिका बैठा |
हमारे प्यार के आँगन  में जो दीवार करता है ||
उसे खोजो तभी देश का अंधियार जाएगा |
वो जिंदा रह गया तो देश अपना  हार जायेगा |
उसे सूली चढ़ा दो या उसे जिंदा दफ़न कर दो ,
नहीं तो प्यार के रिश्तों को लकवा मार जायेगा ||

लहू है कीमती इसको न सड़कों पर बहाओ तुम ,
वतन पर आँच आई तो वतन का काम आएगा |
लहू इस मुल्क का यदि खौल उटठा जो मेरे भाई ,
तो ये संसार सारा एक पल को कांप जायेगा || 


Saturday, 17 September 2011

तिरंगा

भारत की अस्मिता का एक नाम तिरंगा |
बलिदानियो के रक्त का परिणाम तिरंगा ||
उद्दाम राष्ट्र चेतना का धाम तिरंगा |
फहरा रहा है विश्व में अविराम तिरंगा ||
भारत की आन बान है धरती की शान है |
यह ध्वज नहीं है देश का गौरव गुमान है ||
करता रहा गुलामी से संग्राम तिरंगा |
स्वाधीनता का विश्व में पैगाम तिरंगा ||

केशरिया रंग चढ़ती जवानी की तरह है |
सदियों के त्याग तप की कहानी की तरह है ||
बलिवेदियों पे शीश के दानी की तरह है |
यह शौर्य की तलवार के पानी  की तरह है ||
इस रंग की अरुणाई में सूरज की कथा है |
रक्तिम जलधि की उग्र तरंगों की व्यथा है ||
भारत के स्वाभिमान का आकाश रचा है |
इस रंग ने ही देश का इतिहास रचा है ||
सम्मान का चढ़ता हुआ  पारा है तिरंगा |
बोलो न गर्व से कि हमारा है तिरंगा ||

धरती कि तरह है जो इसका रंग हरा है |
उत्साह नई क्रांति के सपनों का भरा है ||
इस रंग में उत्कर्ष के अश्वों कि त्वरा है |
यह रंग परिश्रम के ललाटों से झरा है ||
यह देश के भूगोल कि पहचान बना है |
भू देवता के त्याग का यश गन बना है ||
सम्रद्धि के स्वर इसने सभी साध रखे हैं |
इस रंग ने धरती के रंग बांध रखे हैं ||
जय हिंद का उदघोष त्रिवाचा है तिरंगा |
आतंक के गालों पे तमाचा है तिरंगा ||

जो श्वेत रंग है त्याग के पलड़े पे तुला है |
इस रंग में कुछ रंग अहिंसा का घुला है ||
यह द्वार है जो शांति के पिंजरे का खुला है |
आंसू कि धार से या पसीने से धुला है |
पानी कि तरह है मगर पानी तो नहीं है |
है वर्तमान गुजरी कहानी तो नहीं है ||
इस रंग से ही न्याय कि सत्ता अमंद है |
इस रंग से ही सत्य का रुतबा बुलंद है ||
इस्रंग को सीने में छुपाये है तिरंगा |
समझो कि शपथ सत्य कि खाए है तिरंगा ||

यह चक्र मेरे देश के दर्शन की तरह है |
विज्ञानं के वैभव के प्रदर्शन की तरह है ||
हर छन पे साँस साँस पे जीवन की तरह है |
यह चक्र जो कि चक्र सुदर्शन कि तरह है ||
इस चक्र ने धरती को विजय गान दिया है |
इस चक्र ने जड़ताओं को गतिमान किया है ||
भारत के सपूतों के लिए जान की  तरह |
यह चक्र है उगते हुए दिनमान की  तरह ||
सपनों सा अपनी आँख में पाले है तिरंगा |
इस चक्र को सीने में संभाले है तिरंगा ||

यह देश की धड़कन से जुड़ा है इसीलिए|
एहसास के आंगन से जुड़ा है इसीलिए ||
यह देश के जन-गण से जुड़ा है इसीलिए |
यह प्यार के बंधन से जुड़ा है इसीलिए ||\
शोलों में उतर जाएगी इस देश की जनता |
तूफाँ  से गुज़र जाएगी इस देश की जनता ||
जो चाहिए कर जाएगी इस देश की जनता |
इसके लिए मर जाएगी इस देश की जनता ||
भारत के कीर्तिरथ को ये रुकने नहीं देगी |
मिटके भी तिरंगे को ये झुकने नहीं देगी ||
जनता के इसी मर्म पे आघात किया है |
मुद्दा न कोई है तो तिरंगे को लिया है ||
पाएगा सियासत से क्या सम्मान तिरंगा |
जब बन गया है वोट का सामान तिरंगा ||

यह राम है रहीम है पूजा है करम है |
उम्मीद है उत्साह है मजहब है धरम है ||
तरूणाई की बाहों में फड़कता है तिरंगा |
इस देश के सीने में धड़कता है तिरंगा ||
यह देश की इज्ज़त है इसे शान से रखो |
दिल में है अगर शेष तो ईमान से रखो ||
सत्ता की चाह ले के उठाओ न तिरंगा |
अपनी बिसात पर यूँ बिछाओ न तिरंगा ||
हम सबके लिए क्या है बताओ न तिरंगा |
इस ओछी राजनीति में लाओ न तिरंगा ||
इस देश की जनता स्वयं इन्साफ करेगी |
इससे कोई गुस्ताखी नहीं माफ़ करेगी ||
हम सबके लिए जान से प्यारा है तिरंगा |
बोलो न गर्व से  कि  हमारा है तिरंगा |||

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Thursday, 8 September 2011

दोहे

जाड़े में जाड़ा नहीं, पावस में बरसात |
ऋतुओं को भी लग गयी राजनीति की वात||

कोयल बैठी नीम पर, पिय को रही पुकार |
क्या जाने इस देश फिर, लौटे नहीं बहार ||

साँसों में अनुराग के ज्यों ही महके फूल|
आँखों में उड़ने लगी, लाचारी की धूल ||

कठिन परीक्षा दी मगर, मिला नहीं परिणाम |
प्रश्न पत्र पर लिख दिया, किसी और का नाम||

सुविधाओं का अनवरत ,झरता रहा प्रताप |
उतना जल उसको मिला थी जितनी औकात ||

यह कैसा आक्रोश है ,यह कैसा उन्मेश |
घटना हो परदेश में जलता अपना देश ||

तापमान बढ़ने लगा  ,सर पर चढ़ा जुनून|
गंजे को अधिकार से मिले बड़े नाख़ून ||
बड़े बड़े तरु गिर गए , बिखर गया अभिमान |
आकर अपने बाग़ से ,चला गया तूफान ||

गठरी लेकर ज्ञान की , घूम रहे विद्वान |
नासमझों के गाँव में ,कौन करे सम्मान ||

पानी ही पानी दिखा ,कम्पित हुआ पहाड़ |
बादल ने ही जल-प्रलय ,धरती पर है बाढ़ ||

पानी ने पानी दिया ,सबका यहाँ उतार |
पानी पानी हो गए सारे पानीदार ||

दोहे

त्राही त्राही जनता करे,मौज करे हुक्काम |
फिर भी पकिस्तान को , दीख रहा संग्राम ||

दो कौड़ी का देश है , हमें रहा ललकार |
याद नहीं आती इसे , तीन बार की  मार ||

याददाश्त कमज़ोर है ,तेरी पाकिस्तान |
अपने ही दामाद को नहीं रहा पहचान ||

बोल रहे हैं अंतुले ,बिना तोल के  बोल |
अबकी बार चुनाव मैं,जनता देगी तोल ||

आँखों मैं लज्जा नहीं , बलिदानों पर क्लेश |
ऐसे मंत्री को रहा ,झेल हमारा देश ||

बलिदानों की तेरहवीं ,लगा रहे है लोग||
महापात्र इस देश के राजनीती के लोग ||  

धमकी पर धमकी चढ़ी ,वादों पर प्रतिवाद |
मर्द मौन हो सुन रहे ,हिजड़ों का संवाद ||

घर छूटा  कुर्सी गयी ,चढ़ा प्यार का भूत |
चाँद मोहम्मद बन गए ,भजनलाल क पूत||

ये तो दिल का रोग है , ले लेता है प्राण |
मंत्री पद की बात क्या, कहते है कल्याण ||

भारत कब तक रहेगा ,बन कर गौतम बुद्ध |
आखिर करना पड़ेगा आर पार का युद्ध ||