Tuesday, 27 September 2011

आह्लाद जिया

जीने को यूँ भी जी लेता , लेकिन मैंने अपवाद जिया |
दो चषक प्रीतिके जीने थे , सौ -सौ  कलशे  अवसाद जिया ||
प्राणों की विकल  पिपासा ने ,
शीतल सरिता का जल पाया |
लेकिन उस जल की चाहत ने ,
मोहक शब्दों का छल पाया ||
शहदीली अभिलाषाओं ने अनपेक्षित सा आस्वाद जिया |
दो चषक प्रीति के जीने थे सौ -सौ कलशे अवसाद जिया ||
घटनाये रहीं चीखती पर ,
विश्वासों का श्रृंगार किया |
पागल विवेक के तकों को ,
अंतस ने अस्वीकार किया ||
वादों , वचनों की बेला में , मनुहारों ने प्रतिवाद जिया |
दो चषक प्रीति के जीने थे , सौ-सौ कलशे अवसाद जिया |\
अच्छा था पूर्ण समर्पण से,
पहले अहसास बिखर जाता |
हर सपना सूनी आँखों में ,
आने से पहले मर जाता ||
सुख की बाहें सुस्म्रतियाँ हैं , पीड़ाओं का अनुवाद जिया| 
दो चषक प्रीति के जीने थे सौ-सौ कलशे अवसाद जिया ||
मुझको छूना , मुझमें घुलना .
मेरी सांसों में खो जाना |
हर आकुलता का मर जाना ,
संवेदन पत्थर हो जाना |\
संबंधों की अकुलाहट ने अंतर्वेधी सम्वाद जिया |
दो चषक प्रीति के जीने थे , सौ-सौ कलशे अवसाद  जिया ||
अब तुझसे क्या शिकवा करना ,
मुझको मुझसे हरने वाले |
मेरी खातिर जीने वाले ,
मेरी खातिर मरने वाले ||
मैंने तो हर पल जीवन में आँसू -आँसू आह्लाद जिया |
दो चषक प्रीति के जीने थे ,सौ- सौ कलशे अवसाद जिया| 
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