Monday, 26 September 2011

गीत


यहाँ सब स्वप्न सी सच्चाईयाँ हैं , तुम नहीं हो |
समय की टूटती अंगडाइयां  हैं , तुम नहीं हो ||
हमारे गाँव में वर्षा वधू की पालकी उतरी ,
गगन में मेघ देखो आके घहराने लगे हैं |
घुंघुरुओं की तरह से छनकती हैं भूमि पर बूंदें ,
सरोवर मौन थे वह भैरवी गाने लगे हैं ||
ये बंदनवार सी अमराइयाँ हैं तुम नहीं हो |
यहाँ सब स्वप्न सी सच्चाइयाँ हैं तुम नहीं हो ||

घनी बसवारियों के बांस परिणय खंभ जैसे |
तुम्हारी भांवरों की चिर प्रतीक्षा में खड़े हैं ||
निशा की श्याम आँचल में दमकते हीरकों से |
अनगिनत जुगनुओं के रत्न मनमोहक जड़े हैं ||
पिकी की बज रही शहनाइयाँ हैं तुम नहीं हो |
यहाँ सब स्वप्न सी सच्चाइयाँ हैं तुम नहीं हो ||

यह हरियाली लिए है रंग आँचल का तुम्हारे |
दिशाओं में तुम्हारी खुशबुएँ फैली हुई है ||
हमारी यह सघन अनुभूतियाँ जो जागती हैं |
तुम्हारी चेतना की उँगलियों से अन छुई हैं ||
बहुत मादक हुई पुरवाइयां  हैं तुम नहीं हो| 
यहाँ सब स्वप्न सी सच्चाइयाँ  हैं तुम नहीं हो ||  

उपस्थिति है तुम्हारी पर हमारी कल्पना में |
तुम्हे यह घर ,यह देहरी , द्वार छूकर देखना चाहें ||
हमारी गाँव की गलियाँ , बगीचे , खेत, चौबारे ,
तुम्हारे गात को साभार छूकर देखना चाहें ||
ये स्वागत में सजल अंगनाइयां हैं तुम नहीं हो |
समय की टूटती अंगनाइयां हैं तुम नहीं हो ||
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