Wednesday, 28 September 2011

ग़ज़ल

टुकड़ा- टुकड़ा जीने की लाचारी होता है |
अगर यही है प्यार  तोह ये बिमारी होता है ||
आँखों का सूनापन ,या खालीपन सीने का ,
जाने किसके स्वागत की तैयारी होता है ||
शायद उस रुसवाई   के पीछे भी उल्फत हो ,
एक नशा है जो यकीं पर तारी होता है ||
इतने गम इतनी बेचैनी औ इतने आँसू,
लम्हा लम्हा अब उसका आभारी होता है ||
उसको पता नहीं है , उसके इंतज़ार वाला ,
एक एक पल दिल पर कितना भारी होता है ||
वैसे तो मेरी आँखों के आँसू पी जाता ,
चख कर बोला यह पानी तो खारी  होता है ||
नहीं स्वांति -जल ,ते प्यासे मरने की मजबूरी ,
यह ज़ज्बा ही चाहत की खुद्दारी होता है ||
कत्लगाह तक तो 'नरेश ' को उसने पहुँचाया
क़त्ल का फतवा और किसी से जारी होता है ||
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