शपथ पत्र
कविता मेरे लिए सब कुछ है ! आज तक जो भी पाया कविता से पाया ,जो भी खोया उसके पीछे भी कविता का ही हाथ था !एक धनहीन परिवार से अपनी पहचान कविता के सहारे बनाने निकला था !पैसा तो नहीं मिला देश - विदेश में पहचान जरूर बन गयी ! अभावों और संघर्षों से लड़ने की ताक़त कविता ने ही दी ! निराशा और अवसाद के गहन क्षणों में कविता नर टूटने नहीं दिया !मैं जीवन की अंतिम श्वांस तक कविता का ऋणी रहूँगा !
इसी कृतग्यता की अभिव्यक्ति स्वरूप डॉ उर्मिलेश और कैलाश गौतम की मंत्रणा से वर्ष -२००५ में मैनें अखिल भारतीय मंचीय कवि पीठ की लखनऊ में स्थापना की !हिन्दी कविता की वाचिक परम्परा को स्थापित करने के प्रयोजन से कई राष्ट्रीय - अंतर राष्ट्रीय आयोजन किये ! देश विदेश से आमंत्रित कवियों , हिन्दी सेवकों का सम्मान किया ! हर समारोह में उपलब्धि नामक साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन भी कर रहा हूँ !
निष्कर्ष यह की कविता मेरे लिए श्रद्धा है ,पूजा है और जिन्दगी भी ! हज़ारों कविसम्मेलनों में काव्य पाठ संयोजन और संचालन किया और कर रहा हूँ !इन बड़े समारोहों के कारण नई पीढ़ी के रचनाकार मुझे कवि के स्थान पर केवल संयोजक समझने लगे !मेरे लिए एक विचित्र स्थिति बन गई ! मैं सदैव छंद बद्ध कविता का हामी रहा हूँ !लम्बी कवितायें ,गीत ,छंद ,मुक्तक ,दोहे सभी कुछ खूब लिखा !तमाम पात्र - पत्रिकाओं में छपा भी !किन्तु मेरी एक कमी है जिसे मैं स्वीकार करता हूँ ,प्रकाशन के लिए रचनाएं भेजने में आलसी रहा हूँ !
कविता ह्रदय की वास्तु है केवल मष्तिष्क की नहीं !छंद में सभी कुछ कहा जा सकता है ! इधर कविता में तमाम तरह के आंदोलन चले !नई कविता के अलंबरदारों ने छंद मुक्त कविता को ही कविता मान सम्पूर्ण छांदिक परम्परा को ही खारिज कर दिया !यह एक भयावह स्थिति थी !नई कविता के नाम पर अपठनीय और उलझाऊ गद्य का सृजन कियाजाने लगा !मानता हूँ कविता का का यह पश्चिमी संस्करण कविता भी हो सकता है ,यदि उसमें तरलता ,संवेदनशीलता और सहज बोधगम्यता हो !
कबूतर अब नहीं रोता मुक्त छंद कविताओं का यह संग्रह आपको सौंपते हुए मेरा निवेदन है कि आप इसकी भाव गंगा की गहराई तक अवश्य उतरेंगे !
कुछ कविताओं को छोड़ दें तो संग्रह की शेष सभी कवितायें स्वानुभूत प्रेम की अभिव्यक्ति हैं !संभव है कि यह निजी पीड़ा और आनंद की अनुभूतियाँ आपको अपनी लगें !मैंने अपना काम कर दिया है अब बाक़ी काम आपका है !अभी आपसे बहुत कुछ कहना है !अगली पुस्तकों में यह संवाद चलेगा !
मेरी अर्धांगिनी पुष्पा जो स्वयं एक अच्छी कवयित्री हैं ,वे इस संग्रह के मूल में हैं !मेरे बच्चे - राजेश , दिव्या , काव्या सभी का योगदान किसी न किसी रूप में इस संग्रह की कवितायें लिखने से लेकर छपने तक रहा है!
सुप्रसिद्ध उपन्यासकार मेरे अग्रज श्रद्धेय सुधीर निगम [कानपुर ] का प्रोत्साहन प्रियवर पवन बाथम और वनज कुमार 'वनज ''[जयपुर ]की आत्मीयता और सहयोग ने इसे पुस्तक का आकार देने में महत्व पूर्ण भूमिका अदा की है !
अंत में पूरी आश्वस्ति के साथ आपकी स्वीकारोक्ति के निमित्त "कबूतर अब नहीं रोता " कविता संग्रह आपको हस्तगत कराता हुआ आपसे त्रुटियों की क्षमा के साथ अतिरिक्त स्नेह की कामना करता हूँ !
डॉ नरेश कात्यायन
लखनऊ