Saturday, 5 April 2014



तैयार नहीं

भाग्य ने भूख को दिए हरे भरे खेत
लहलहाती फसलें
लेकिन रोटी नहीं दी
प्यास के लिए आकाश में घिरे काले - काले
पानी से बोझिल बादल
नदियों और झीलों के सपने
पानी की एक बूंद नहीं
वक्ष की शून्यता को कहानियों के रगीन
कल्पना कुसुम
खतरनाक मुँहज़ोर विषैला धुंवा
यह सभी खिलौने संभाले अकिंचन ह्रदय
सदियों की भूख आदिम प्यास
वक्ष की अहैतुकी शून्यता को
कब तक सहन करे !
कब तक रोके
 वर्षों से सुलगते ज्वालामुखी को
जो हर क्षण विस्फोट के लिए उद्यत है
अभी ह्रदय में समझौतों की
 गीली मिट्टी से ढका है
कब तक बहलने का स्वांग करेगा
यह मन अब खिलौनों से बहलने
और किसी नयी चोट के लिए
बिलकुल तैयार नहीं !

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