Saturday, 5 April 2014

ग़ैर ज़रूरी है

कितना ग़ैर ज़रूरी है भूख मरने पर खाना
रात खराब करने के बाद तानकर सोना
प्यास चटख जाने के बाद पीना
फिर वः विष हो अमृत हो या मदिरा
पानी या दूध
उससे भी अधिक अनावश्यक है
 किसी के अनचाहे प्यार को
अधिकार के रूप में स्वीकार कर लेना
उलाहनों और बहानों के सहारे
सम्बन्धों को चलाते रहने के लिए
विवशता  का वरण  करना
किसी अपने का मन रखने के लिए
किसी का भरोसा तोड़ देना
सबसे अधिक अवांछनीय है !
विश्वास  की ज़मीन पर
चमकदार अविश्वासों के बीज बिखेरना
और इसी छल को निरंतर
सच कहते जाना
निहायत ग़ैर ज़रूरी है !`

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