Tuesday, 1 April 2014

सुनामी

कहाँ गई हथेली की लकीरें ?
क्या हुए जन्म पत्रियों  के फलादेश ?
लड़खड़ा गए विज्ञान के चमत्कार
नकर्म न भाग्य केवल हाहाकार
बचे तो वे भी नहीं
जो पढ़ते थे विधाता का लेखा
गणना ज्योतिष की
दो साल बाद शादी /पांच बच्चे
दो लड़के तीन लडकियां
अगले साल लगेगी नौकरी
दस साल बाद नये मकान का योग
उम्र पूरे छियासी वर्ष
पक्का - पक्का रंच भी संदेह नहीं !
स्वतन्त्रता दिवस पर तिरंगे के सामने
राष्ट्र गान गाते हुए जयहिंद कहने का हौसला
किसी ने सागर से नहीं पूछा
न ही किया सवाल नियंता से
क्या तमिलनाडु और क्या निकोबार
श्रीलंका या इंडोनेशिया
हर आदमी के पास अपना भाग्य
अपनी हथेली /जन्म पत्री  भी
खूबसूरत सपने भविष्य के !
पूरा चाँद चांदी के थाल जैसा
चांदनी के बहाने अमृत कुम्भ से अमृत बरसाता
शिव / विष्णु /गणेश /सूर्य //हनुमान दुर्गा और लक्ष्मी
गिरिजाघरों में क्रास पर लटके
ईश्वर के पुत्र
अल्लाह की इबादत के ठिकाने
गुरुग्रंथ साहिब की चंदनी रहलें
अपनी कृपाओं से चराचर को अभय देने वाले
अलौकिक शक्ति पुंज
स्त्री /पुरुष /पशु पक्षी और तमाम योजनाएं
प्रीति और द्वेष
युद्ध और शान्ति
मान -अपमान /उपकार -अपकार
खुले मैदान और वन
सागर ने ली केवल एक करवट
और फिर सभी समा गया अथाह जल राशि में
सुनामी के एक ही खाते में  एक ही जगह
चढ़ गया सब का नाम
वी वी आई पी के आगमन की तरह
सब कुछ स्थगित /सारे रास्ते बंद !
जल तो जीवन है
फिर यह जल प्रलय
सागर ने समाप्त कर दिया सबका लेखा
पैदा नहीं हुए मर गये  एक साथ
उजड़ी बस्तियां /टूटी नावें और सड़ती लाशें
समंदर को पता था क्या होने वाला है
न कोई पूर्व सुचना न संकेत
भाग्य को भी नहीं बताया अपना कार्यक्रम
सारे पूज्य देवी देवता
लग गए एक ही घाट
किसी ने सागर का कॉलर पकड़कर
नहीं हिम्मत की पूछने की
अपनी ही जान बचा लेता
भाग्य और भगवान् से भी बड़ा हो गया सागर
विज्ञान को जेब में दाल लेता रहा अंगड़ाई
धरती इस विनाश लीला पर
बार - बार कांपी /आज भी सिहर उठती है
सदियों की भूख से छटपटाते
सागर ने निगल लिया लाखों का जीवन
बिना दांतों के कच्चा चबा गया
लौट गया इतना विनाश कर अपनी सीमाओं में
है किसी की हिम्मत ?
आज भी पूछ सके उससे
सैकड़ों सत्यों को झुठलाकर
धरती के ललाट पर लिख दिया उसने
एक कड़वा सत्य
भाग्य से बड़ा झूठ और मौत से बड़ा सच
केवल एक उक्ति के अलावा कुछ नहीं
"कि यही भाग्य में लिखा था "
पश्चाताप के पीछे की तैयारियां
हताशा के बाद की बुनावटें
टूटी नाव के तख्तों में कील ठोंकता मछुहारा
मुंह टाक रहा है विशाल नीले सागर का !

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