Wednesday, 16 April 2014



हम सब संस्कारी हैं

खान लड़ता है आदमी ?
लड़तीं हैं कुटिल मानसिकताएं
खून और बारूद से जिनके नाम के विज्ञापन
लिखे होते हैं दुश्मनों की छाती पर
कहाँ लड़ते हैं देश ?
राज भवनों पर लगे ध्वज
केवल फहरते हैं लड़ते नहीं
तोपें /मशीन गनें /बंदूकें
जंग भले लग जाय
लोहा मिट्टी बनता है तो बन जाय
कभी लड़े हैं आज तक ?
लड़ती हैं आवाज़ें
कठपुतलियों की तरह नाचती हुई
सिपाही भी कहाँ लड़ते हैं ?
उनके जेहन में घुस जाती हैं ये आवाज़ें
अपने - अपने सिंहांसन  की छतरी थामें
लिप्साओं के हवन कुण्ड में
आहुतियां देती हैं ये आवाज़ें
ॐ युद्धाय नमः !
ॐ महाकालाय नमः !
ॐ विनाशाय नमः !
साकिल्य बनते हैं पीढ़ी दर पीढ़ी मनुष्य
हरी - भरी धरती
निर्मल नदियां /झरने /पहाड़
सुख और शान्ति जैसे द्रव्य
मान्सिक्ताएं भी लड़ती कहाँ ?
हवन करती हैं
हवन करना पावन संस्कार है
सनातन संस्कृति का
हम सब संस्कारी हैं !

No comments:

Post a Comment