Tuesday, 15 April 2014

प्रतिबिम्ब

तनिक अनुभूति से दो - चार हो लो
उतारो
औपचारिकता सने झूठे मुखौटे
तुम्हारे सामने
कदभर तुम्हारे
उघारो ज़रा सी पलकें
विलोको
प्रीति का दर्पण खड़ा है
सत्य से आँखें मिलाकर
स्वयं को मथकर
बात करने का नहीं अभ्यास तुमको
क्षम्य है
पर यह मुखौटा तो उतारो
बात करलो स्वयं से भी एक क्षण
मीत यह दर्पण तुम्हें
स्वीकार कर लेगा किसी भी रूप में
स्वयं का प्रतिबिम्ब देखो तो !

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