Sunday, 6 April 2014

नई कविता

रचनाकार को भूख लगी
रपटी पर लिख दी एक कविता
नहीं भरा मन
व्यंजनों के नाम लिख डाला एक गीत
प्यास में वर्षा पर गीत लिखा
और बड़ी प्यास इतनी कि
झरनों नदियों और सागरों पर छंद रचे
फॉर भी नहीं बुझी प्यास
अब उसने मदिरा के छलकते प्यालों
सुरा- सखी की  मादक दृष्टि पर लेखनी चलाई
 थक गया कवि
गीत की फर्श पर चांदनी बिछाकर लेट गया
गर्मी और उमस ने हलकान किया
पुरवैया के शीतल झोंकों पर बुन दिया
लोकभाषा का मधुर गीत
करवट बदली
देह की तृष्णा और प्यार की चाहत ने
सोने नहीं दिया
उसने सुन्दर स्त्री के आपाद मस्तक
श्रृंगार के अक्षर - अक्षर सजा दिए
अतृप्त मन फिर भी आकुल रहा
उसने कागज पर रूपायित कियाएक अलौकिक
अप्सरा की छवि को
होठ जलने लगे उसके
धुंवां भर गया वक्ष में
साँसें अनियंत्रित हो गयीं उसकी
स्त्रियों क्र चेहरे बदल - बदल कर
रच दिए कितने ही छंद
हर सृजन पर उदास होता गया
चुकने लगे उसके शब्द
कागज पर उभरा एक चेहरा अक्षरों की शक्ल में
प्यास ने आत्मा तक को छटपटा दिया
शब्दों का टोटा  हो गया
उजड़ गयी भावों की दूकान
अचानक उसके बच्चों ने रोटी का सवाल किया
उसकी बीमार मरणासन्न /जर्जर तन पत्नी से
कवि की लेखनी की स्याही सूख  चुकी थी
आसुंओं  की तरह
निधन हो गया भावों का
 अतृप्ति के आघातों से
उसने रोटी पर कविता लिखने का
फिर असफल प्रयास किया
रोटी नहीं बनी कल्पना में
टूट गया सारी विधाओं का व्याकरण
चेतना को अंतिम बिंदु तक झकझोरा
नहीं निकला कोई परिणाम
इस बार उसने क़लम कि गैर मौज़ूदगी में
 भाव / शब्द और कल्पना के बिना
एक नयी कविता लिखी
" सल्फास" !


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