परिचिता
तुम्हारी आँख से मुस्कान ने
जब यात्रा अपनी
अधर पर स्थगित कर दी
बताओ किसलिए फिर
एक छोटी सी सचाई
एक लघुतम हंसी के आलोक को
अयाचित या पूर्व दंशित भाव लाकर
रौंदती हो बल लगाकर
अजन्मी प्रीति की ले कुंडली कर में
समय का यह बृहस्पति
तुम्हारी वह क्षणिक मुस्कान
अभिनय से जिसे झुठला रही तुम
उसे स्पष्ट करना चाहता है
समझलो प्रिय
प्यास का सम्मान्य सौदागर
तुम्हारे युग अधर पर
चाहता रखना अलौकिक प्यास
सिर्फ समझौतों संवारी ज़िंदगी में
सुखद विश्वास वाले केतकी के फूल
भरना चाहता है
बताओ प्रीति से परहेज़ क्यों है !
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