Monday, 14 April 2014




परिचिता

तुम्हारी आँख से मुस्कान ने
जब यात्रा अपनी
अधर पर स्थगित कर दी
बताओ किसलिए फिर
एक छोटी सी सचाई
एक लघुतम हंसी के आलोक को
अयाचित या पूर्व दंशित भाव लाकर
रौंदती हो बल लगाकर
अजन्मी प्रीति की ले कुंडली कर में
समय का यह बृहस्पति
तुम्हारी वह क्षणिक मुस्कान
अभिनय से जिसे झुठला रही तुम
उसे स्पष्ट करना चाहता है
समझलो प्रिय
प्यास का सम्मान्य सौदागर
तुम्हारे युग अधर पर
चाहता रखना अलौकिक प्यास
सिर्फ समझौतों संवारी ज़िंदगी में
सुखद विश्वास वाले केतकी के फूल
भरना चाहता है
बताओ प्रीति  से परहेज़ क्यों है !

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