एक थी सोना
एक थी सोना
साहित्य की अध्यवसायी /कला की व्यवसायी
कविता भी कहानी भी
कहानी में कई तरह के पात्र
जाति /धर्म और आयु के बंधन से मुक्त
कविता में गज़ब के मन्त्र
मोहन फिर वशीकरण
उच्चाटन के बाद मारण
कला साध्य भी साधन भी
कलाके मूल्य से पूरी तरह भिज्ञ
कलाके सौंदर्य के प्रति हर क्षण सजग
गहरी अभिव्यक्ति /अद्भुत अभिनय
कला की प्यास में टूटे मन /सूनी आँखें
धुंआं - धुंआ सीने /न्योछावर हो जाते लोग
साहित्य को समेट लेती कला के वज़ूद में
कला के व्यापार में दक्ष
कभी स्वयं की गैलरी कभी दूसरे की
साहित्य के सेवकों कला के उपासकों से
अपनी कृति के एवज़
तन ,मन धन और प्राण तक वसूल लेती
सर्वस्व खोकर सम्मोहन में बंधे जड़ लोग
फिर भी गुणगान करते उसका
ऐसा जादू ऐसा टोना
एक थी सोना !
कलाकी अभिव्यक्ति में संवेदना के
अतिरंजित गहरे चित्र
स्वयं संवेदन शून्य
न आंसुओं का असर न शब्दों का प्रभाव
हलाहल भी दे तो अहसान करे
सात पर्दों में छुपी कुटिलता
साहित्य का सम्राट मन से भिखारी
समर्पित हो गया कला सुंदरी को
उसकी कला को संवारने के लिए
उसकी आत्मा को पखारने के लिए
उसके विष का शमन करने के लिए
सब कुछ लगा बैठा दांव पर
अपने लहू से चित्रों के रंग गहरे किये
अपने वज़ूद की चादर से अतीत की धूल झाड़ दी
नाम की सोना को सोना बनाने के प्रयास में
स्वयं शून्यत्त में खोने लगा
और वह व्यावसायिक निष्ठुरता का हाथ थाम
एक झटके में उसका समग्र तोड़कर
अपनी कला का दम्भ पाले
कृतघ्नता को चरमोत्कर्ष देती
उत्तर गयी फिर किसी नयी गैलरी में
निश्चित ही उसका कला व्यवसाय बढ़ेगा
दूरदर्शन के चैनलों पर
उसकी कला का प्रदर्शन उसके साथ
करोड़ों कला प्रेमी देखेंगे
वह चाहती ही थी इतना विस्तृत होना
ऐसी थी सोना !
एक थी सोना
साहित्य की अध्यवसायी /कला की व्यवसायी
कविता भी कहानी भी
कहानी में कई तरह के पात्र
जाति /धर्म और आयु के बंधन से मुक्त
कविता में गज़ब के मन्त्र
मोहन फिर वशीकरण
उच्चाटन के बाद मारण
कला साध्य भी साधन भी
कलाके मूल्य से पूरी तरह भिज्ञ
कलाके सौंदर्य के प्रति हर क्षण सजग
गहरी अभिव्यक्ति /अद्भुत अभिनय
कला की प्यास में टूटे मन /सूनी आँखें
धुंआं - धुंआ सीने /न्योछावर हो जाते लोग
साहित्य को समेट लेती कला के वज़ूद में
कला के व्यापार में दक्ष
कभी स्वयं की गैलरी कभी दूसरे की
साहित्य के सेवकों कला के उपासकों से
अपनी कृति के एवज़
तन ,मन धन और प्राण तक वसूल लेती
सर्वस्व खोकर सम्मोहन में बंधे जड़ लोग
फिर भी गुणगान करते उसका
ऐसा जादू ऐसा टोना
एक थी सोना !
कलाकी अभिव्यक्ति में संवेदना के
अतिरंजित गहरे चित्र
स्वयं संवेदन शून्य
न आंसुओं का असर न शब्दों का प्रभाव
हलाहल भी दे तो अहसान करे
सात पर्दों में छुपी कुटिलता
साहित्य का सम्राट मन से भिखारी
समर्पित हो गया कला सुंदरी को
उसकी कला को संवारने के लिए
उसकी आत्मा को पखारने के लिए
उसके विष का शमन करने के लिए
सब कुछ लगा बैठा दांव पर
अपने लहू से चित्रों के रंग गहरे किये
अपने वज़ूद की चादर से अतीत की धूल झाड़ दी
नाम की सोना को सोना बनाने के प्रयास में
स्वयं शून्यत्त में खोने लगा
और वह व्यावसायिक निष्ठुरता का हाथ थाम
एक झटके में उसका समग्र तोड़कर
अपनी कला का दम्भ पाले
कृतघ्नता को चरमोत्कर्ष देती
उत्तर गयी फिर किसी नयी गैलरी में
निश्चित ही उसका कला व्यवसाय बढ़ेगा
दूरदर्शन के चैनलों पर
उसकी कला का प्रदर्शन उसके साथ
करोड़ों कला प्रेमी देखेंगे
वह चाहती ही थी इतना विस्तृत होना
ऐसी थी सोना !
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