Tuesday, 1 April 2014

गोमती के किनारे

 कई साल बाद देखा
गोमती नदी के दोनों किनारों को
एक किनारे
पानी से निकाला गया सडा बदबूदार कचरा
मनुष्यों के साथ पशु - पक्षियोँ की
बजबजाती सड़ती लाशें
जलकुम्भी और सिवार का नरक
शहर का कूड़ा गिराते
नगरपालिका के ट्रक
सीवर लाइनों से निकल गोमती के
वक्ष में समाते गंदे नाले
उकडू बैठ अपनी काया की गंदगी से
निजात पाते लोग
दूसरे किनारे
लगा शहर की सभ्यता और तहज़ीब का मेला
रंग  -बिरंगे शानदार शामियाने
सजे -धजे /लक -दक शहरियों के झुण्ड
विद्युत् की  सतरंगी झालरें
तमीज़ और संस्कारों की झक्कास दुकानें
दोनों किनारों का अपना - अपना भाग्य !
शायद मैं भी इसी नदी की तरह हूँ
मेरे भी एक किनारे मेला है
मेरे नाम का /पद का /पैसे का
मेरी वाणीके प्रभाव का
मेरे तथाकथित विराट व्यक्तित्व का
सम्बन्धों के मायाजाल का
किन्तु दूसरा तट
 छटपटाता अपनी सड़ांध से
टूटते विश्वासों और अजाने पापों से
स्वार्थ और लिप्सा की बदबू से
बजबजाती कुटिल कामनाओं से
जिसे देख हर आदमी नाक पर रुमाल रख
अनदेखा कर निकल जाता है चुप चाप
मेरा समूचा अस्तित्व बंटा है
इन दो किनारों में
और मध्य में धारा का पानी
पट रहा है
अवांछित - अयाचित कचरे से !

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