Saturday, 5 April 2014


यह तुम्हीं हो न

वह विचार जो मेरी चेतना को मथ रहा था
सपना जो आँखों में सोते जागते आ जाता है बार - बार
मेरे न चाहने के बाद भी
नहीं मुक्त हो पाता  मैं उससे
वह विचार जो मृत्यु के भय को
जीवित कर रहा था
जीवन संघर्षों की अलिखित गाथा का साक्षात्कार
धड़कनों के संगीत का व्याकरण
समझाने को आकुल - व्याकुल
वह विचार जो पाँव के कांटे को हिला - हिलाकर
मेरे ज़ेहन को कंपा रहा था
उसके समानांतर किन्तु उसके बाद
वह सपना जो पांवों को
फूलों की घाटियों में ले जाता है
वह सपना जो तपती  दोपहरी में
 छायादार पेड़ की तरह
पड़ाव बन जाता है यात्रा का
वह सपना कभी-कभी आता है
तुम्हारी तरह
हाँ अकेला छोड़ते वक़्त कहता है मुझसे
मुझे कुछ पल रहने दो अकेला
मुझे उस सपने और तुममे
कोई अंतर नहीं लगता
मैं अधिकार जमा सकता  हूँ
न उस सपने पर न तुम पर !
न उससे अलग हो सकता हूँ न तुमसे
तुम्हारी ही तरह उसकी भी धुन है
इस वक़्त वह  सपना और तुम दोनों हो
मैं हूँ एक प्लेटफार्म सिर्फ प्लेटफार्म
आने - जाने वाले क्यों चिंता करें उसकी
कभी प्रारम्भ कभी पड़ाव
मंजिल किसी की नहीं प्लेटफार्म
यात्रियों के चरण- चिन्ह
केले और संतरे के छिलके /लिफ़ाफ़े /पान की पीकें
अपने वक्ष पर तब - तक रहता है संजोये
जब - तक स्टेशन का सफाईकर्मी
अपनी कृपा न करदे !


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