कविता
आकुल पुकार कवि के ह्रदय की
मानवता के ललाट पर चन्दन
भाषा और संस्कृति का श्रृंगार !
मरुस्थल में बहने वाली गर्म हवाओं में
मलयज समीर घोलती है
जबजब इंसान चुप होता है कविता बोलती है
ज्ञान के अर्थ शास्त्र पर संवेदना से लिखा
प्रेम का संविधान है
बाप के क्रोध पर वासत्सल्य के अमृत की तरह
शिशु की अलौकिक मुस्कान है
आग है पर छप्परों को नहीं जलाती है
यह आंधी झोपड़ी में जलते दिए का
रक्षा कवच बन जाती है
नफरतों से ग्रस्त कुटिल चिंतन को झंझोड़ती है
यह बृह्मा के कमंडल का करुणा जल है
टूटे हुए दिलों को जोड़ती है
मानवीय चेतना में प्यार का
शीतल आलोक भरती है
राजनीति नहीं है कविता
जो धर्म ,जाति ,भाषा और दाल के नाम पर
इंसान से इंसान को अलग करती है
कल्पना की झील पर तैरते भावना के खेतों पर
प्रीति के केशर की किसानी है
टूटे सपनों के होंठों पर
छटपटाती प्यास के लिए
संवेदना का मीठा पानी है !
कविता जन्म के साथ कवि को सृस्टा बनाती है
अपनी अनुभूतियों के सहारे उसे दृष्टा बनाती है
विधाता की रचना में ही कवि का
अपना अलग रचना संसार है
कवि को अपने समकक्ष बिठाने के लिए
परमात्मा का यह अनुपम उपहार है
आध्यात्मिक चेतना /दार्शनिक चिंतन
को कविता स्नेह की तरलता देती है
कवि को प्रेमी ,पागल और फिर दार्शनिक
बनाकर ही दम लेती है
व्यवस्था के समक्ष खड़े शोषित व्यक्ति का
अहिंसात्मक हथियार है
आपत्ति काल में भी डेरी और मर्यादा की पतवार है
ठंढी रातों में ठिठुरते
जेष्ठ की दोपहरी में तपते
बैलों के साथ पसीना बहाते
धरती के देवता का स्वाभिमान है
सरहदों पर गोलियां झेलते
देश के सैनिकों की पूजा में रचित सामगान है
भ्र्ष्टाचारियों ,अनाचारियों और देशद्रोहियों के
गालों पर पड़ने वाला ज़ोर का तमाचा है
कवि के द्वारा उठाया गया
करुणा , प्रेम और शान्ति का त्रिवाचा है
हवाओं में तब-तब सुगंध फैली है
जब - जब कविता अपने रस में चली है
सत्य की शपथ उठाने वाले कवि के हांथों में
कविता शब्दों की गंगाजली है
कविता रूप के मंदिर में प्रेम के देवता पर
चढ़ाया गया अनाघ्रात सुमन है
यह उन्हीं को रास आती है
जिनके पास एक खूबसूरत मन है
यह अनुराग की ऐसी भीनी फुहार है
जो संतृप्त ह्रदय को पोर - पोर नहलाती है
इसे अपने पथ का सही ज्ञान है
ह्रदय से निकलकर सीधे ह्रदय तक जाती है
विषाद के खतरनाक क्षणों में
हताशा से बचाने वाली मज़बूत ढाल है
कविता कवियों के लिए
ज़िंदगी है कपड़ा है मकान है रोटी और दाल है !
आकुल पुकार कवि के ह्रदय की
मानवता के ललाट पर चन्दन
भाषा और संस्कृति का श्रृंगार !
मरुस्थल में बहने वाली गर्म हवाओं में
मलयज समीर घोलती है
जबजब इंसान चुप होता है कविता बोलती है
ज्ञान के अर्थ शास्त्र पर संवेदना से लिखा
प्रेम का संविधान है
बाप के क्रोध पर वासत्सल्य के अमृत की तरह
शिशु की अलौकिक मुस्कान है
आग है पर छप्परों को नहीं जलाती है
यह आंधी झोपड़ी में जलते दिए का
रक्षा कवच बन जाती है
नफरतों से ग्रस्त कुटिल चिंतन को झंझोड़ती है
यह बृह्मा के कमंडल का करुणा जल है
टूटे हुए दिलों को जोड़ती है
मानवीय चेतना में प्यार का
शीतल आलोक भरती है
राजनीति नहीं है कविता
जो धर्म ,जाति ,भाषा और दाल के नाम पर
इंसान से इंसान को अलग करती है
कल्पना की झील पर तैरते भावना के खेतों पर
प्रीति के केशर की किसानी है
टूटे सपनों के होंठों पर
छटपटाती प्यास के लिए
संवेदना का मीठा पानी है !
कविता जन्म के साथ कवि को सृस्टा बनाती है
अपनी अनुभूतियों के सहारे उसे दृष्टा बनाती है
विधाता की रचना में ही कवि का
अपना अलग रचना संसार है
कवि को अपने समकक्ष बिठाने के लिए
परमात्मा का यह अनुपम उपहार है
आध्यात्मिक चेतना /दार्शनिक चिंतन
को कविता स्नेह की तरलता देती है
कवि को प्रेमी ,पागल और फिर दार्शनिक
बनाकर ही दम लेती है
व्यवस्था के समक्ष खड़े शोषित व्यक्ति का
अहिंसात्मक हथियार है
आपत्ति काल में भी डेरी और मर्यादा की पतवार है
ठंढी रातों में ठिठुरते
जेष्ठ की दोपहरी में तपते
बैलों के साथ पसीना बहाते
धरती के देवता का स्वाभिमान है
सरहदों पर गोलियां झेलते
देश के सैनिकों की पूजा में रचित सामगान है
भ्र्ष्टाचारियों ,अनाचारियों और देशद्रोहियों के
गालों पर पड़ने वाला ज़ोर का तमाचा है
कवि के द्वारा उठाया गया
करुणा , प्रेम और शान्ति का त्रिवाचा है
हवाओं में तब-तब सुगंध फैली है
जब - जब कविता अपने रस में चली है
सत्य की शपथ उठाने वाले कवि के हांथों में
कविता शब्दों की गंगाजली है
कविता रूप के मंदिर में प्रेम के देवता पर
चढ़ाया गया अनाघ्रात सुमन है
यह उन्हीं को रास आती है
जिनके पास एक खूबसूरत मन है
यह अनुराग की ऐसी भीनी फुहार है
जो संतृप्त ह्रदय को पोर - पोर नहलाती है
इसे अपने पथ का सही ज्ञान है
ह्रदय से निकलकर सीधे ह्रदय तक जाती है
विषाद के खतरनाक क्षणों में
हताशा से बचाने वाली मज़बूत ढाल है
कविता कवियों के लिए
ज़िंदगी है कपड़ा है मकान है रोटी और दाल है !
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