Tuesday, 15 April 2014

प्रेम दिवस पर

शायद तुम्हें बुरा लगा हो
एक गुलाब का फूल भी नहीं दे सका
प्रेम - दिवस पर
मेरा मौन - मौन रहना
मैं तुम्हें बहुत - बहुत प्यार करता हूँ
नहीं कह पाया मेरा संकोच
टूट गई तुम्हारी प्रतीक्षा
बहुत खला होगा मेरा व्यवहार
कुछ और दरक गया हो!
तुम्हारी सौगंध
मेरा कुछ भी नहीं है मेरे पास
वह मन भी नहीं
जो बहुत चाहता है तुम्हें
मेरा अहंकार भी नहीं
जो पुरुषोचित था
तुमसे अलग सोचने वाली सोच
कुछ भी बचा नहीं मेरे पास !
एकाकार हो चुकी है दो दीपकों की लौ
एक और एक मिलकर एक हो चुके हम
इस हाल में
क्या कहता तुमसे ? किसे देता गुलाब ?
तुम्हें सौंप चुका हूँ
कभी न मुरझाने वाला गुलाब
देखो नाराज़ मत होना
तुम्हारे रूठने या टूटने से
टूट जाएंगे हम !
        

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