Tuesday, 1 April 2014

सपने

सपने भी इतने
किसी मालिन की डलिया के फूलों भर
दन्त कथाओं में
राजा - रानी के सवाल जवाब के बीच
सौ योजन से भी दूर
सोने के बालों वाली
चांदी की तरह शफ्फाक़ गोरी
केतकी के फूलों की खुश्बू से महमहाती
गुलाब की पंखुरियों से भी कोमल
राजकुमारी को राक्षस के पंजे से
निकाल लाने का वचन
राजा का राक्षस के हाथों मारे जाने का भय
उससे भी अधिक
 राजकुमारी के सौत बनने का डर
उफ़ ये सपने
रानी के हाथों बिक गए
मालिन की डलिया में रखे
बेले ,गुलाब और गेंदे के फूलों में छिप नहीं पाये
रानी को भय है सौत का
राजकुमारी को राक्षस का
राजा को दोनों के अलावा मौत का
और ये सपने
इसी भय का ताना - बाना बुनते - बुनते
दन्त कथाओं की तरह
झूठ की कब्र में दफ्न हो रहे हैं
अब ये पलकों में नहीं
ज़ेहन में भी नहीं
और न ह्रदय में ही रह पाये
केवल शब्दों में ही ज़िंदा हैं  !

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