अर्चना
अर्चना किस देवता की
वह कि जो पाषाण और निष्प्राण
बैठा मंदिरों की गोद में
जिसको नहीं अनुभूति कोई
देहरी पर सर पटककर लौट आईं
व्यथित आकुल और निराश्रित प्रार्थनाएँ
एक भी हँसता हुआ पाटल किसी की कामना को
दे नहीं पाया
मानवों की भीरुता जिसका सहारा
रमा कण -कण में जगत के
कथ्य में अभिव्यंजना जिसकी
जो विचारों में मुखर है
आस्था की पालकी में चिर विराजित
भावना के पुष्प केवल चाहता है !
किन्तु यह सौंदर्य मंडित गात किसकी अर्चना है ?
सचल आद्रिल प्राण वाली भव्य प्रतिमा
श्वास में जिसके अगोचर लोक
युग भुजाएं हार मूँगे के
नेत्रों के प्रखर आशा दीप
प्रीति के दोहे सरीखे होठ
श्वास गंधित धूप चन्दन युक्त
अर्चना का यह विशद ऐश्वर्य
कौन है वह भाग्यशाली देव ?
कौन है वह देवगृह ?
जो यह समर्पण कर वरण हो जाएगा कृतकृत्य
कामना नृत्य होगा किस निलय में ?
अर्चना के पुष्प जो धारण करेगा
वह कोई इंसान होगा
और वह इंसान तुम हो !
अर्चना किस देवता की
वह कि जो पाषाण और निष्प्राण
बैठा मंदिरों की गोद में
जिसको नहीं अनुभूति कोई
देहरी पर सर पटककर लौट आईं
व्यथित आकुल और निराश्रित प्रार्थनाएँ
एक भी हँसता हुआ पाटल किसी की कामना को
दे नहीं पाया
मानवों की भीरुता जिसका सहारा
रमा कण -कण में जगत के
कथ्य में अभिव्यंजना जिसकी
जो विचारों में मुखर है
आस्था की पालकी में चिर विराजित
भावना के पुष्प केवल चाहता है !
किन्तु यह सौंदर्य मंडित गात किसकी अर्चना है ?
सचल आद्रिल प्राण वाली भव्य प्रतिमा
श्वास में जिसके अगोचर लोक
युग भुजाएं हार मूँगे के
नेत्रों के प्रखर आशा दीप
प्रीति के दोहे सरीखे होठ
श्वास गंधित धूप चन्दन युक्त
अर्चना का यह विशद ऐश्वर्य
कौन है वह भाग्यशाली देव ?
कौन है वह देवगृह ?
जो यह समर्पण कर वरण हो जाएगा कृतकृत्य
कामना नृत्य होगा किस निलय में ?
अर्चना के पुष्प जो धारण करेगा
वह कोई इंसान होगा
और वह इंसान तुम हो !
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