Wednesday, 2 April 2014

रिक्शेवाला

पसीने से भीगी बंडी ,फटा गंदा पायजामा
बिखरे सूखे बालों की तरह
बिखरी ज़िंदगी को संवारता
तपती  दोपहर से जूझता रामदीन
एक जोड़ी चप्पल घिसने में
प्रदेश की चार और देश की दो सरकारें
किसान के धैर्य की तरह
लड़खड़ाकर गिर गईं !
रामदीन इसी रिक्शे पर टंगा
अपनी पुरानी घिसी चप्पलें चटका रहा है
पसीना है कि बैंक के कर्ज़ों की तरह
सूखे बालों के बीच रास्ता बनाकर
माथे से पलकों पर होता हुआ गालों को भिगोता
उसके अस्तित्व को झकझोर रहा है !
धूप से चौंधियायी आँखों में
दमकती दस रूपये के नोट की चमक
अंगौछे से बार - बार पसीना पोछ
पुरानी  फ़िल्मी धुन पर रिक्शा खींचते हुए
रामदीन से सवारी ने अचानक पूछा
"कंहाँ रहते हो "
उत्तर न मिलने पर फिर वही सवाल
"यहीं रिक्शे पर "
"कोई कमरा नहीं लिया "
"नहीं ,परिवार गाँव में है "
"घर में कौन - कौन है "
"चार बच्चे /एक ठो बीबी ऊपर से बूढ़े माँ  - बाप
मेरे अलावा कुल सात परानी "
"रोज़ गाँव चले जाते हो "
"नहीं बाबू ! गाँव तभी जाता हूँ
जब ज़ेब में महीने के राशन ,दवा - दारु
बच्चों की फीस और कापी किताबों के
पैसे आ जाते हैं "
"अगर कमाई न हो तो "
"मेरे पांवों की ताक़त /हांथों की मज़बूती
मेरे परिवार की दुआओं से कम नहीं होती
कमाई होती नहीं की जाती है बाबू :'
फिर कोई सवाल नहीं
नामुराद सपनों में खोया रामदीन
किसी देश का प्रधान मंत्री
किसी प्रदेश का मुख्य मंत्री क्यों नहीं हो जाता
अथवा
उसकी जिम्मेदार कर्मनिष्ठा
हमारे देश के नेताओं /पूंजीपतियों
लालफीता धारकों और बुद्धिजीवियों में
स्थानांतरित क्यों नहीं हो जाती ? 

No comments:

Post a Comment