बहुत हँसता है पागल
वह पागल बहुत हँसता है
जब कोई बाप
घर में जवान कुंवारी बेटियों के होते हुए
कमाई का पैसा दारु की भटठी में झोंककर
खुद को मन का राजा बताता है
यह ठहाके लगाता है
जब कोई कर्मचारी /अधिकारी पगार से
हज़ार गुना कोठी कार और फार्महाउसों पर
लगाकर हरिश्चंद्र बन जाता है
या देश का ज़िम्मेदार नेता
साम्प्रदायिक दंगे करवाकर
प्रेम और सद्भाव पर मार्मिक भाषण देता है
पालता है अपनी कोठियों में डाकुओं की फ़ौज
खूब हँसता है पागल !
किसी भावुक व्यक्ति से मन का सौदा कर
कोई जिस्म फरोश महिला
उसका लहू चूसकर भावनाओं का मज़ाक उड़ाकर
ओशो की फिलासफी समझाती
नए शिकार की तरफ बढ़ जाती है
तब इसे बहुत हंसी आती है !
बिना पैसे और सिफारिश के कोई प्रतिभाशाली
बेरोजगार
भारत के ईमानदार दफ्तरों में नौकरी के लिए
अर्ज़ी पर अर्ज़ी देता है
फिर एक दिन हाथ में कट्टा या
सल्फास की गोलियां थाम लेता है
फ़ैल जाती है पागल की हंसी
जब कोई कवि
देशभक्ति की कविता पढ़ने से पहले ताल ठोंकता है
शब्दों से नफ़रत का बारूद
झोंक देता है लोगों के ज़ेहन में
मंच के पीछे पैसे और कविसम्मेलन के लिए
मान सम्मान का सौदा करता है
इसकी हंसी रोके नहीं रुकती
इंजीनियर का समधी ठेकेदार
बालू की छन्नी से छांटा है सोना
रिश्तों की नींव पुख्ता करता है सीमेंट और सरिया से
मिट्टी और गिट्टी से झाड़ता है चांदी
ठेकेदार समाज सेवा में
इंजीनियर ईमानदारी के लिए
शासन से सम्मान और मेडल पाते हैं
पागल के रोम - रोम तालियां बजाते हैं
सरकारी अस्पताल का फॉरेन रिटर्न सर्जन
पैसे के बिना
आपरेशन टेबिल पर
गरीब भगवानदास का फटा हुआ पेट
छोड़कर आगे बढ़ जाता है
मरीज को कभी टेबिल पर और कभी
सड़क पर मारता है
खुद को चरक ,धन्वन्तरि और हैनीमेन से
बड़ा बताता है
कभी किडनी कभी आँख और कभी खून से
विदेशों तक धंधा फैलाता है
हँसते - हँसते दुहरा हुआ पागल
अचानक धाड़ मार कर रोता है
जब किसी सहीद का शव
तिरंगे में लिपटा उसके सम्मुख होता है
अथवा किसी कोठी से
नन्हें - मुन्नों की दिल डाला देने वाले चीत्कार
नर पशुओं की क्रूरता के नीचे
डैम तोड़ देते हैं
या किसी कूड़ेदान में अविवाहित माँ
अपनी संतान को छाती से अलग कर
कुत्तों के लिए छोड़ देती है
ज़ार - ज़ार रोता है यह पागल
जब कोई,संपत्ति के लिए
अपनी माँ ,बहन ,पत्नी ,भाई और बाप को
कुल्हाड़ी या फरसे से छंट देता है
निर्ममता से शिशुओं की भी काट देता है गर्दनें
संबंधों की इस सफेदी पर
यह पागल हर बार अपना धैर्य खोता है
पागल तो पागल है
कभी हँसता है कभी रोता है !
वह पागल बहुत हँसता है
जब कोई बाप
घर में जवान कुंवारी बेटियों के होते हुए
कमाई का पैसा दारु की भटठी में झोंककर
खुद को मन का राजा बताता है
यह ठहाके लगाता है
जब कोई कर्मचारी /अधिकारी पगार से
हज़ार गुना कोठी कार और फार्महाउसों पर
लगाकर हरिश्चंद्र बन जाता है
या देश का ज़िम्मेदार नेता
साम्प्रदायिक दंगे करवाकर
प्रेम और सद्भाव पर मार्मिक भाषण देता है
पालता है अपनी कोठियों में डाकुओं की फ़ौज
खूब हँसता है पागल !
किसी भावुक व्यक्ति से मन का सौदा कर
कोई जिस्म फरोश महिला
उसका लहू चूसकर भावनाओं का मज़ाक उड़ाकर
ओशो की फिलासफी समझाती
नए शिकार की तरफ बढ़ जाती है
तब इसे बहुत हंसी आती है !
बिना पैसे और सिफारिश के कोई प्रतिभाशाली
बेरोजगार
भारत के ईमानदार दफ्तरों में नौकरी के लिए
अर्ज़ी पर अर्ज़ी देता है
फिर एक दिन हाथ में कट्टा या
सल्फास की गोलियां थाम लेता है
फ़ैल जाती है पागल की हंसी
जब कोई कवि
देशभक्ति की कविता पढ़ने से पहले ताल ठोंकता है
शब्दों से नफ़रत का बारूद
झोंक देता है लोगों के ज़ेहन में
मंच के पीछे पैसे और कविसम्मेलन के लिए
मान सम्मान का सौदा करता है
इसकी हंसी रोके नहीं रुकती
इंजीनियर का समधी ठेकेदार
बालू की छन्नी से छांटा है सोना
रिश्तों की नींव पुख्ता करता है सीमेंट और सरिया से
मिट्टी और गिट्टी से झाड़ता है चांदी
ठेकेदार समाज सेवा में
इंजीनियर ईमानदारी के लिए
शासन से सम्मान और मेडल पाते हैं
पागल के रोम - रोम तालियां बजाते हैं
सरकारी अस्पताल का फॉरेन रिटर्न सर्जन
पैसे के बिना
आपरेशन टेबिल पर
गरीब भगवानदास का फटा हुआ पेट
छोड़कर आगे बढ़ जाता है
मरीज को कभी टेबिल पर और कभी
सड़क पर मारता है
खुद को चरक ,धन्वन्तरि और हैनीमेन से
बड़ा बताता है
कभी किडनी कभी आँख और कभी खून से
विदेशों तक धंधा फैलाता है
हँसते - हँसते दुहरा हुआ पागल
अचानक धाड़ मार कर रोता है
जब किसी सहीद का शव
तिरंगे में लिपटा उसके सम्मुख होता है
अथवा किसी कोठी से
नन्हें - मुन्नों की दिल डाला देने वाले चीत्कार
नर पशुओं की क्रूरता के नीचे
डैम तोड़ देते हैं
या किसी कूड़ेदान में अविवाहित माँ
अपनी संतान को छाती से अलग कर
कुत्तों के लिए छोड़ देती है
ज़ार - ज़ार रोता है यह पागल
जब कोई,संपत्ति के लिए
अपनी माँ ,बहन ,पत्नी ,भाई और बाप को
कुल्हाड़ी या फरसे से छंट देता है
निर्ममता से शिशुओं की भी काट देता है गर्दनें
संबंधों की इस सफेदी पर
यह पागल हर बार अपना धैर्य खोता है
पागल तो पागल है
कभी हँसता है कभी रोता है !
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