Friday, 11 April 2014

चित्र के भगवान

नमन तुमको चित्र के भगवान
मेरे राम
तुम हो उन पलों की सृष्टि
जब अनहद जगा अनुभूति  जाएगी मनुज में
और वह करने लगा अनुमान
स्वयं में उसने तलाशा अंततः यह रूप
हे चितेरे के ह्रदय के भूप !
अलौकिक /अनुपम सुघर छवि
चेतना में चिर निहित अस्तित्व
कल्पना के तरल रंगों से संवारा
कामना की कूचियों से
ह्रदय की करुणा चिरंतन वेदना से
डालकर प्रतिबिम्ब में नव प्राण
खुद महकने लग गया
निज भावना की सुरभियों से !
नमन तुमको आर्त के सौंदर्य !
मनुज के अन्वेषणों का ताप
हैं अलंकृत आप जितने रंगों से
उतने ही रंगों में था विभाजित
छवि तुम्हारी है महज एकात्म दर्पण
अंतर का समर्पण है तुम्हारी सृष्टि
स्वीकारो मुझे
राम मेरे चित्र के भगवान !

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