Tuesday, 1 April 2014

ये खतरनाक दीवारें

दीवारों के कान थे  /सुनती थीं दीवारें
बात पुरानी हो गयी
जब कान लगाए रहतीं थीं दीवारें
खतरनाक हो गई
किसी आदमखोर बाघ से भी ज्यादा
ये खूंख्वार दीवारें बोलने लगीं हैं
ज़िंदाबाद - मुर्दाबाद
करने लगीं हैं जंग का ऐलान
क्रान्ति की झंडाबरदारी
मिटा देने की ललकारें
सड़क पर आ गई हैं दीवारें
आजकल नशे में धुत हैं
जाति के नशे में
धर्म के नशे में
भाषा और रंग के नशे में
परिवारवाद और सत्ता के नशे में
इन्हीं पर चढ़ता है यह नशा
परिवर्तन के नशे में मदहोश दीवारें !
यह शहर की दीवारें गाँव की दीवारों की तरह
सीधी और भोली थीं
 शहर  की सड़कों के कोलतार में अपना -
चेहरा देखकर
तन से ही नहीं मन से भी काली हो गयीं
शरीर पर समय का रंग
सामाजिक /धार्मिक /सियासी
रिक्तता का भी चढ़ा
मन की कालिख डामर की सड़कों से होते हुए
गाँव के कच्चे घरों की कच्ची दीवारों तक
पहुँच कर बदल दी उनकी मानसिकता
ये शहर की दीवारें यज्ञकुंड नहीं
कि जो डालो स्वाहा
उर्वरा भूमि हैं यह
शब्दों के एक -एक बीज से जन्मती हैं
सैकड़ों रक्तबीज
जुनून और उन्माद के बवंडर
द्वेष की आंधियां उठाती
आतंकवादी हो चुकी हैं दीवारें !
इन्हें बचाने की बात सरासर मूर्खता
इनसे बचने का तरीक़ा कहाँ से आये
यातायात का धर्म निभाते
बाएं चलने का अर्थ यह कतई नहीं
कि दुसरा भी निभाएगा
कठिन है इनसे खुद को बचाना
इन्हें उन्माद का स्वर देने वाले
नहीं बचने देंगे इनसे !
पथरा चुकीं हैं दीवारें
बिना किसी सदमे या दुःख के
भीतर का मसाला सूखते ही
निर्मम हो गयीं हैं दीवारें
आग लगातीं किसी के इशारे पर
रक्त बहातीं किसी के कहने पर
कोई तनिक उकसा भर दे
करा देंगी दंगा !
बुद्धि से कुंड हो चुकीं ये विषाक्त दीवारें
दूसरों की मर्ज़ी पर घर से लेकर
देश तक तोड़ने में संलग्न
इन्हें मालुम है  यह भी टूटेंगी एक दिन
लेकिन अभी किसी हाथ
छेनी /हथौड़ा या फावड़ा नहीं है
तभी तो और अधिक खतरनाक हैं
ये खूंख्वार दीवारें !

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